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शब्द ।। ( ३८७) भरथरिगोरखगोपीचंदा। तामनमिलिमिलिकियोअनंदा ४ जो मनको कोइ जान न भेवता मन मगन भये शुकदेवाः एकल निरंजन सकलशरीरातामें भ्रमि भ्रमिरहल कवीरा६ | जो कहि आये कि नाना उशसना कार सांच साहबको न जान्यो सो इहां कहै हैं । ता मनको चीन्हौ रे भाई । तनुछूटे मन कहाँ समाई ॥१॥ सनक सनंदन जयदेव नामाअम्बरीष प्रहलाद सुदामा॥२॥ भक्त सही मन उनहुं न जानाभक्तिहेतुमनउनहुं न ज्ञाना । जा मनते नाना उपासना भई ता मनको हे भाई ! चीन्ही यह मन के को भयो है अर्थात् जौने मनते नाना उपासना ठाढ़ीकै लियो है सो मनते तुमहदे भयो है सो यह विचारतो करो जब सब शरीर छूट जाई है तब मन कहां समाईहै अर्थात् तुमहीं में समाई जाइ है सो मनके मालिकतौ तुमहौ मनैते जो नाना उपासना ठाढ़ कै लिया है ते तुम्हारी उपासना सांच कैसे होइ ॥ १ ॥ सनक सुनंदन सनत्कुमार नामदेव जयदेव अंबरीष प्रहलाद सुदामा ये सब भक्त सही हैं संसारते छूटे हैं परन्तु मनको वोऊ न जान्यो नो मनको जानते तैौ मनने भिन्नद्वै कै मनवचनके परे जो मेरो रामनाम है। ताहीको जपते । औरे औरेकी भक्तिको कारणजो है मन तेहि कारकै उनहूँको मेरो प्रथमज्ञान न होतभयो फेरि जव औरे २ सपासननमें कुछ न देख्यो तब साहब कहै हैं कि मोमें लगे काहेते कि वह मन आपैते होई अझ वह जीवारमाके परे मैं हौं काहेते कि यह मन आत्मैते होइहै अरु वह जीवात्माके परे मैंहीं काहेते कि मेरो अंशहै अरु ध्यानादि ज्ञानादिक सब मनते अनुमान करै हैं ताते ज्ञानको अनुभव ब्रह्म औ ध्यान को अनुभव उपास्य देवता ये मनके भीतर होवई चाहैं औ मन आत्माको है ताते मनमें आत्माको स्वरूप कैसे आइ सकै वहतो मनते परे है सो जब मनको छोड़े है तब चिन्मात्र रह जाइ