पृष्ठ:बीजक.djvu/४३६

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(३८८) बीजक कबीरदास । है यातें मन बचनके परे आत्मा होवई चहै अरु जब मैं हंसस्वरूप देउहौं तामें स्थितद्वैक मेरे पास आवते कल्पनाकारकै नानारूप में न लगते ॥२॥३॥ भरथरगोरखगोपीचंदातामनमिलिमिलिकियोअनन्दा ४ जामनकोकोइजाननभेवा।तामनमगन भये शुकदेवा ॥६॥ भरथरी गोरख गोपीचंद ने हैं ते वही मनहीं में मिलिकै आनंद कियो अर्थात् जौने ब्रह्ममें मिलिकै आनन्द कियों को ब्रह्ममनहींको अनुभव है ॥४॥ सो जौने मनको अनुभव ब्रह्म होइ है अरु वह ब्रह्म उपास्यकनमे अर्थ आपनी नाना ईश्वर स्वरूप कल्पना करैहै तौने मनको भेद कोई नहीं जान्यो तौने मनके मगनमें कहे: राह में शुकदेव ना भये गर्भहीते मायाको त्यागि दियो औ सनक सनकादिक प्रहृलादादिक बहुत श्रमकरिकै फेरि फेरि समुझयो है सो साहब कहै है कि मौको जानिके मेरे पास आये । इहां रामोपासक शुकदेव को छूटिगये जो कह्यो तौ रामोपासक सब आई गये॥५॥ एकलनिरंजनसकलशरीरातामेंभ्रमिभ्रमिरहलकबीरा॥६॥ एक जो है निरंजन ब्रह्म सर्वव्यापी तिनहीं को नानाशरीर नारायणादिक महेशादि रूपहै तिनहीं में सिगरे कबार कायाके बार भ्रमि भ्रमि रहतभये कहे उनहीकी उपासना करतभये अपनो रूप हो मेरो रूप न जानत भये अरु ब्रह्म नानारूप कल्पनाकार लिया है तामें प्रमाण ॥ ‘उपासकानां कार्यार्थ ब्रह्मण रूपकल्पना।। याको अर्थ मेरे सर्व सिद्धांतमें है औ रामोपासक शुकदेवको कहि आये हैं सो शुकाचार्यई मुक्त द्वैगयेहै तामें प्रमाण ॥ *शुको मुक्तेो वामदेवो वा इति श्रुतेः ॥ औ रामोपासक रहै हैं तामे प्रमाण ॥ “पादांबुजं रघुपतेः शरणं प्रपद्ये ॥ इति भागवते ॥ औ कवीरऊजीको प्रमाण ॥ “आदिनाम शुकदेवनो पावा। पूर्वजन्मके कर्ममिटावा ॥ ६ ॥ इति बानबे शब्द समाप्त ।