पृष्ठ:बीजक.djvu/४६१

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शब्द । (४१३) सो दशरथसुतको तौ तीनौलोक जाने पै रामनामको मर्म कोऊ कोऊ जानैहैं। अर्थात् कबहूँ दशरथ सुत कबहूँ नारायण कबहूं व्यापक ब्रह्मही अवतार लेइ हैं नित्य साकेत विहारी परम पुरुष पर जे श्रीरामचन्द्र जिनके नामते ब्रह्म ईश्वर वेद शास्त्र सब निकसै हैं तौने रामनामको तौ ममैं आनहै ॥ २ } जेहि जियजानि परा जस लेखारिजुको कहै उरगको पेवा यद्यपिफलउत्तमगुणजाना।हरिहित्यागमनमुक्ति न माना जाको यह रामनाम जैसो जानि परयो है सो तैसे लेख्यो है कोई रघुनाथ है। को दशरथके पुत्रै मानै है कोई नारायण को अवतार मानै है कोई ब्रह्मको अवतार म नै हो तिनहीं को नाम रामनाम भानैहै सो जैसे रसरीको उरग यह हैं विना समुझे ऐसे रामनाम जो साहबको है सो भ्रम छोड़िकै बिचारै तौ ती साहिवैको वाध करैहैं ॥ ३ ॥ सो यद्यपि उत्तम गुण जानेके फल होयहै। कि विष्णु क प्राप्त भये परन्तु परम पुरुषपर जे श्रीरामचन्द्र तिनके पास भये बिना हम मुक्ति नहीं मानै हैं ॥ ४ ॥ हरिअथारजसमीनहिनीरा।औरयतनकछुकहैकवीरा ॥५॥ सो जैसे मीनको आधार अंबुहै बिना जल मीन नहीं रह सकै है तैसेः श्रीरामचन्द्र सबके आधारहैं सो तिनहीं को जो आधार माने तो जैसे मीन सर्वत्र जलही देखै है द्विभुजरूप श्रीरामचन्द्रको सर्वत्र देखै औ उनहींमें रहै तो श्री कबीरजी कहै कि और यतन सब थोरई है तामें प्रमाण श्री गोसाईज को }} दोहा ।।** सो अनन्य अस जाहिके, मति न टरै हनुमन्त । मैं सेवक सुचरादर, रूप राशि भगवंत ॥ १!! तामें प्रमाण कबीरजीको ।। ५ नैनन्न आई ख्याल घनेर । अरध उरध बिच लगन लगी है क्या संध्या क्या नि सबेरा । जेहि कारण जग भरमत डालै सो साहब वट लिया बसेर । पूरै रह्यो अस-- मान धराणिमें जितदेखा तित. साइब मेरः । तलबी एक दियो मेरे साहब कह केबर दिलही बिच फेरा ।। ५ ॥ इति एकसै नव इब्द समाप्त ।