पृष्ठ:बीजक.djvu/४६४

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बीजक कबीरदास । ज्ञान जो चंता ताको खाय लियो चीता साहबके ज्ञानको काहेते कह्यो कि जब साहबको ज्ञान होइहै तब अद्वैत ज्ञान नहीं रहनाई है औ का जो अज्ञान सो साहबको ज्ञान जो लगर शिकारी पक्षो कागा को खानवारो ताको काग! खायलियो औ असत् शास्त्रके अनेक प्रकारके जे अर्थ तेई हैं बटेर ते सव शास्त्र में साहबके बतावनवारे तेई हैं बाज ताको जीतिलियो अर्थात् तामसीजे हैं। ते तामस शास्त्रको प्रचार कार सत् शास्त्रको लोप करिदियो ॥ २ ॥ मूसातो बंजारै खायो स्योरै खायो श्वाना । आदिको उपदेश जानै तासु बेस वाना ।। ३ । एकै तो दादुर सो खायो पाँचौ जे ध्रुवंगा । कहै कबीर पुक्कारिक हैं दोङ यक संगा ॥ ४ ॥ मूसा जो है बितंडाबाद सो साहबक उपदेश जो मंजार ताको खायलियेई औ स्यार जो माया सो जीवके स्वरूप ज्ञानते जो होइहै स्वानुभवानंद सोई है इवान ताको खाइ लियो सो कबीरजी कहै हैं जो कोई आदिको उपदेश जो है रामनाम जानै ताहीको वेष बाना है और सब पाखंडई है ॥ ३ ॥ एकही दादुर जो मन सो दादुरके खाय लेनवारी पांचभुवंग जे रति नेष्ठा भाव प्रेम रस ते ताको खाइलियो सोई एक एकके विरोधी रहे तिनको खाई लीन्है सो कबीरजी कहैं जीव साहब एकै संगके हैं आपने स्वरूपको न समु झये या न विचारयो कि मैं साहबको हैं। ताते संसारी & गये है जो बाहन्छ मुख अर्थ विचारतो त एकही संग को है ।। ४ ।। इति एकसै ग्यारह शब्द समाप्त । अथ एकसै बारह शब्द ।। १३२।। झगरा एक बड़ो जियजानाजो निरुवारै सो निरवान ।।३।। ब्रह्म वड़ा की जाँते आया।बेद बड़ा की जिन उपजाया॥२॥ इहमनबड़ाकीजेहिमनमानारामबड़ाकी राहिं जाना॥३॥ भ्रमिभ्रमिकविरा फिरैउदास ।तीर्थवड़ाकीतीर्थक दास ॥४॥ हैं