पृष्ठ:बीजक.djvu/४६५

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| शब्द । ( ४१७) हे जीवौ ! यह झगड़ा बढ़ो है ताको बिचार करो जो कोई यह झगड़ा निरुवारै सोई निर्वाण कहे मुक्त है। सो है हैं भला जौन ब्रह्म जीव आपने मनते अनुभव कार लियो है सो बड़ा है कि जहांते जीव आयो है लोक प्रकाशते सो बड़ है। सो ब्रह्म बड़ा नहीं है। वा लोकप्रकाश बड़ाहै जहांते जीव आयो है । औ जौने वेदकी अज्ञाते नाना ईश्वर मानि लियो है सो बड़ा है कि रामनाम ते वेद उपजाहै सोबड़ाहै अर्थात रामनाम बड़ा है जाते वेद भयो है । औ मन बड़ा है कि जाको मन आपनेते वड़ा मान्यो है सो बड़ाहै अर्थात् जो मन बचनके परे है सोई बड़ो है जाको मन मान्य है। श्री रामचन्द्र काहूको उपदेश कैरै नहीं आवें श्री रामचन्द्र जाननवारे रामको बतायकै जीवनको उपदेश कै उद्धार कै देइहैं याते रामदास बड़े हैं । औ तीर्थ बड़े कि जे तीर्थकों बिधि सहित न्हाइहैं ते बड़े अर्थात् जे तीर्थके दास बने हैं ते बड़े हैं। सो हे कायाके बीरौ जीवौ ! भ्रमि भ्रमि काहे को उदास फिरौ हौ या बात को बिचारौ ॥ १ ॥ ४ ॥ इति एकसै बारह शब्द समाप्त । अथ एकसै तेरह शब्द ॥ ११३॥ झूठे जनि पतिआहु हो सुन संत सुजाना। घटही में ठगपूर मात खोउ अयाना ॥ १ ॥ झूठेका मंडान है धरती असमाना। दशौ दिशा जेहि फंद है जिउ घेरे आना ॥२॥ योग यज्ञ जप संयमा तीरथ ब्रत दाना। नवधावेद किताब है झूठेका बाना ॥ ३॥ काहुको शब्दै फुरै काहूकरमाती ।। मान वड़ाई लैरहै हिंदू तुरुक दुजाती ॥ ४॥ २७