पृष्ठ:बीजक.djvu/४७२

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| (४२४) बीजक कबीरदास । |ररा रारि रहा अरु झाई। राम कहै दुख दारिद जाई । ररा कहै सुनौरे भाई । सतगुरु पूछि कै सेवहु जाई ॥२७॥ | लला तुतेरे बात जनाई । तुतरे पावै परचै पाई ॥ | अपना तुतुर और को कहई ।एकै खेत दुनों निरबहई ॥२८॥ | ववा वह वह कह सव कोई । वह वह कहे काज नहिं होई॥ | ववा कहै सुनहुरे भाई । स्वर्ग पतालकी खबरिन पाई २९ शशा शरद देखै नहिं कोई । शर शीतलता एकहि होई ॥ शशा कहै सुनौ रे भाई। शून्य समान चला जग जाई॥३०॥ षषा पर पर कह सब कोई । षर पर कहे काज नहिं होई ॥ षषा कहै सुनहुरे भाई । राम नाम लै जाहु पराई ॥ ३१ ॥ ससा सरा रचो वरिआई । सर वेधे सब लोग तवाई ॥ ससाके घर सुन गुन होई । यतनी बात न जानै कोई३२ इहा होइ होत नाहिं जानै । जबहीं होइ तवै मन मानै ॥ है तौ सही लहै सब कोई।जव वा होइ तव या नहिं होई३३ क्षक्षा क्षण परलै मिटि जाई । क्षेत्र परे तब को समुझाई ।। क्षेव परे कोउ अंत न पाया।कह कवीरअगमन गोहराया३४ ओंकार आदिहि जो जानालिखिकै मेटि ताहि फिरि माने॥ वै कार कहौ सब कोई।जिनहुँ लखा सो विरला सोई॥१॥ . ओंकारको आदि नो रामनाम तोको जो कोई जानै पिंडाण्ड ब्रह्माण्डको चाहे लिखिकै कहे उत्पात्तकै मेटै कह नाशकरै फिरि मानै कहे पालनकरै । सो क्ह ओंकारको तो सबै कोई कहै हैं परन्तु जिन बाको लखा है सो कोई