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(४२६) बीजक कबीरदास । जौन खसम ने साहब हैं तिनको छोड़िकै जो दशै दिशामें धावै है कहें नाना उपासना करै है सो या चूकबकसाबै । औ ख जो चैतन्यांकाश सम कहे सर्वत्र पूर्ण ऐसा जो धोखा ब्रह्म ताकी छोड़िके हैं क्षमा द्वैरहु ब्रह्मको बाद विवाद् न करु होइ अखीन कहे आपनो स्वरूप जानिके कि मैं साहबका हौं अक्षय हौं ब्रह्महूमें लीन भये मेरो जीवत्व नहीं जायहै ऐसो हंस रूप वैकै अक्षय पद ने साहब तिनको गहु ख कहे आकाशतामें प्रमाण ॥ “खैमिन्द्रिये खमाकाशेखः स्वर्गेऽपिप्रकीर्तितः ॥ ३ ॥ गगा गुरुके वचनै मानै। दूसर शब्द करै नहिं कानै । तहां विहङ्गम कतहुं न जाई।औगहि गहिकै गगन रहाई॥४॥ ग जो है साहबको गीत ताको गा कहे ते गवैयाहै । सो हेजीव ! तें गुरु जे साहब हैं तिनके वचन मानु कौनबचन ? कि ॥ अजहू देउ ॐड़ाई कालसे जो घट सुरति सँभारै ।। और दूसर शब्द न कान करु जो घट सुरति सँभागों तौ विहङ्गम जो जीवात्मा सो कतै न जाइगो । औगह कहे अवगाह जे साहब हैं तिनको गहिकै गगन जो हृयाकाश ताही में रहैगो । अर्थात् जो साहबको गुण गान करैगो तौ तेरो मन जो सर्वत्र डोलै है सौ कतौं न जाइगो तामें प्रमाण ॥‘गो गैणेशः समुद्दिष्टो गंधर्वो गः प्रकीर्तितः। गं गीतं गाचगाथा स्याद्गौ३चधेनुस्सरस्वती ' ॥ ४ ॥ घघा घट बिनशे घट होई। घटहीमें घट राखु समोई॥ जो घट घटै घटै फिरि आवै।घटहीमें फिरि घटै समावै॥६॥ | ध जो घट है ताको घा जो नाश है सो करन वारो अर्थात् जनन मरण वारे हे घघा जीव ! घट ने पांचौ शरीर ताके विनशे घट जो है हंस शरीर सो होइहै? कैसे होइहै ताको साधन है हैं घटही में घट राखु समोई कहे स्थूल सूक्ष्ममें, सूक्ष्म कारणमें,कारण महाकारण कैवल्यमें, कैवल्य हंसस्वरूपमें, समाइ राखु:अर्थात् एक एक में लीन कै देइ । जो यही रीतिते घट जे पांचौ शरीर तिनको घटैधटै फिरि आवै तौ घट जो है हृदयाकाश ताहीमें घट जो हंस शरीर सो १ख । इन्द्रिग, आकाश, स्वर्गको कहते हैं । | २-ग गणेश, गन्धर्व, गं' गीत, 'ग' गाथा, ' गौ ' गाय और सरस्वतीको कहते हैं । । नाश हैं नशे घट जब समोई समाई