पृष्ठ:बीजक.djvu/४७५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

१ चौंतीसी । (४२७) समावै अर्थात् जीतै । यहीशरीर में हंसस्वरूप पायजाय | घ घातको कहै हैं ॥ घोघटेऽपिसमाख्यातःकिंकिणीवा प्रकीर्तितः ।घा हनूमति विख्यातोघृमूर्द्धनिप्रकीर्तितः । ॥ ५ ॥ ङङा निरखत निशिदिन जाईनिरखत नय न रहत रतनाई निमिष एक लौं निरखै पावै। ताहि निमिषमें नयन छिपावै६ | ङ कहे भयानक ङा कहे बिषय बांछा । सो ङा भयानक बिषय बांछा निरखत कहे बिचारत तोको दिनौ राति जाईंहै बाहीके निरखत में कहे बिचारतमें नय जा नीति सो नहीं रहत रतनाई जो अनुराग बिषयमें सोई रहि नाइहै।कैसीहे वह विघय कि एक निमिष छौं निरखै पावै कहे वामें लगै तौ तौनेन निमिषमें भोगोपरान्त नयन छिपॉवैहै नहीं नीक लागैहै । अर्थात् रूपको देख्यो फिरिनयनमें नीर भार अवैह नहीं नीक लागैहै । सुगन्ध बहुत सुंध्यो उपरांत नाक बार उठेंहै, अच्छ। भोजन कियो तृप्त भये पर बिरस परि जाइहै, गान बहुत सुन्यो फिर बक वाधि लगै है । स्पर्श बहुत सुन्दर स्त्री कियो फिरि वीर्य पात भये, नहीं नीकालागै है, गरम लागन लगै है । सो ये सब तृप्तिके उपरांत जो निमिष है। तौने निमिष नहीं नीक लगै है । ॐ विषय बांछाको केहहैं तामेंप्रमाण । कारो भैरवः ख्यातो को ध्वनावपि कीर्तितः ॥ कारस्स्मरणे प्रोको कारो बिषयस्पृहा ॥ ६ ॥ च चा चित्र रचो वहु भारी चित्र छोड़ि तू चेतु चित्रकारी॥ जिन यह चित्र विचित्र उखेलााचित्र छोड़ तू चेतु चितेला ७ | च कहे मन काहेते कि, मनको देवता चंद्रमा याते मनको कही । औ दूसर चा चोरको कही सो तेरोमन जो चोर सो तेरे स्वरूपको चोराय लीन्हो साहबको भुलायदीन्हो सो यह जगतरूपचित्र जो रच्या चित्रविचित्र सो तू १-च' धड़ा अथवा चॅचुरू को कहते हैं ‘घा' हनुमान और घृशिरको कहतेहैं । २-‘ङ' मैरवको किसीकी याद करनेको और भोगकी इच्छाको कहते हैं ‘डा ब्दकरने को कहते है ।