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शकहिये सुखको शाकहिये शेषको सो हे जीव! तैंतो सुखसागरजे साहव तिनको शेष है अर्थात् अंशहै सो सुखसर साहब हैं तिनको तुमकोई नहीं देखौहें। कैसो है वा सर कि जाकी शीतलता एकई है वा शीतलता पाये फिरि जन्न मरणनहीं होइहै सो शशी ने साहबके शेषसाधुहैं तेकहै हैं कि जिनको अंशजीव तिनको नहींनानै है शून्यजो धोखाव्रह्म ताहीमें जगत् समानजाइहै। श शेषको औ सुखको कहै हैं ॥ वदन्ति ॐ बुधाः शेषे शः शांतश्च निगद्यते ॥शश्च शयनमित्याहुः हिंसा शः समुदाहृतः ॥ ३१ ॥ षषा षषर कहै सब कोई । घर पर कहे काज नहिं होई ॥ षषा कहै सुनौरे भाई । राम नाम लै जाहु पराई ॥३२॥ | | कहिये श्रेष्ठको । सो पा दूसरी है सो हे जीव ! श्रेष्ठते श्रेष्ठले साहब तिनको वरपर सांचसांच सबै कहै हैं औरेको खोटामानै हैं परंतु घर पर कहेते काज जो है मुक्ति सो न होगी बिना रामनामके साधनकीन्हे । औ विन। नीकी प्रकार साहबके जाने। काहेते षषा कहे श्रेष्ठौते श्रेष्ठ जे साहब हैं ते कई हैं। कि, हे भाई ! सुनौ ! तुम राम नामको बैंकै मायाब्रह्म ते पराइ जाउ अर्थात् सब को छोड़कै रामनाम जप । ख श्रेष्ठको है हैं कारकीर्तितः श्रेष्ठेषुइचगर्भविमोचने' ॥ ३२ ॥ ससा सरा रचो वरिआई । सर वेधे सब लोग तवाई ॥ ससाके घर सुन गुन होई। यतनी वात न जानै कोई ३३॥ | स कहिये लक्ष्मी को सा काहिये परोक्षको । सो हे जीव ! तेरो ऐश्वर्याय परोक्षमें है अर्थात् साहबके यहां है या देखबेकी लक्ष्मी तेरी नहीं है सो हैं सराजौकर्म है ताको बरिआई रचिलियो सो वाही सरारूपीशरहै कहे कर्मरूपीशरमें लोग बेधे हैं ते सब तवाईमें परे हैं नरक स्वर्गमें जाय अवै हैं। सो ससा जो जीव ताके धर कहे हृदय में काहूको शून्यकहे धोखा ब्रह्म समान है, काहूके गुण जो | १-‘श' शं- सुख, मङ्गल, श- शेषनाग, शान्त प्रकृति, सोना और हिंसाकरने को कहतेहैं । २-' श्रेष्ठको और चू' गर्भसे प्राणीकी उत्पत्ति होनेको कहतेहैं ।