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पृष्ठ:बीजक.djvu/४९२

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(४४४) बीजक कबीरदास । रामकृष्ण जे हैं तिनकी आशा छोड़िकै पढ़ि गुणिकै किरतिमकहे अपना बनाई मूर्ति अथवा किरतम माया तिनको दास कहावै हैं ॥ ११ ॥ कर्म करहिं कर्महिको धावें । जो पूछैत्यहि कर्म दृढ़वै॥१२॥ निःकम्मकै निंदा करहीं ।कर्म करे ताही चित घरहीं॥१३॥ अस भक्ती भगवतकी लाहिरणाकुशको पंथ चलावें १४॥ | कर्म नाना प्रकारके करै हैं औ कर्मफल जो स्वर्गादिकनको भोग ताहीको धावै हैं औ जो कोई मुक्तिहूकी बात पूछे है ताको कर्मही दृढ़व हैं ॥ १२ ॥ निःकर्मी ने साधु हैं तिनका त निन्दा कैरै हैं औ कोई कर्मकरै है ताको सत्कार करै हैं ॥ १३ ॥ सो या रीतिते भगवत्की भक्ति करै हैं या कहै हैं कि ईश्वर तो अजा गळ थनकी नाई है वाते कौन कामहोय है । है कोई हिरणाकुशको पंथ तामसी मत चलावै हैं कहै हैं कि हमहीब्रह्महैं ऐसो दैत्यनकों ज्ञान है तामें प्रमाण ॥ ईश्वरोऽहमहंभोगी सिद्धोऽहं बलवान् सुखी आयाभिजनवानस्मि कोन्योऽस्ति सदृशो मया ॥ १४ ॥ देवहुकुमतिनरकपरगासाविनुलखिअंतरकिरतिमदासा १९ सो या कुमतिनको प्रकाशते देखी बिनु अन्तरके लखे कि हम कौनके हैं या बिनाजाने किरतिम जो माया ताके दास है रहे हैं रक्षक को न माने रक्षा कौनकरे १६ जाके पूजै पाप नऊडै । नाम सुमिरतें भवमें बूडै॥ १६॥ पापपुण्यकेहाथहिपासा । मारिजक्तसबकीनविनासा॥१७॥ ये वहनी दोउ वहनिनछाडै।यहगृह जारै वहगृहमा॥१८॥ औ जौने देवताके पूजै न पापछूटे ना मुक्तिहोइ तेई देवतन को पूMहैं उनहीको नाम सुमिरि सुमिरि संसार में बूड़े हैं ॥ १६ ॥ औ नाना प्रकारके कर्म बताइकै पाप पुण्य रूप फांसी डारिकै जगत्को विनाश करदेत भये ॥ १७ ॥ औ कोई विम जे हैं ते बहनी कहे संसारमें बहनवारी जो विद्या अविद्या माया पाप पुण्य रूप ताको बहनिन कहे दोवनवारो जो बिष सो ऊपरते छांड्रिकै यह गृह जारिकै कहे छोड़िकै वहगृह कहे वहांके महन्त भये ध्यान लगायकै बैठे ॥१८॥