पृष्ठ:बीजक.djvu/५०१

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कहा । अक्षत नौका जो राम नाम है ताको खेवै न जान्यो कहे जौने बिधित संसार सागरते पार कै देइ है सो विधि राम नाम नपिबेकी न नान्यो । सो कैसे संसार सागरते पार हैकै तीर लागौगे ? सो श्रीकबीरजी कॅहै हैं कि, जोलहा कहे जो कोई राम रस लहाहै अर्थात् राम रस पाय मातो है सोई संसार सागरको पार पायो है, सोई कायाको बोर जीव परम पुरुष श्रीरामचन्द्रको दास भयो है । १ जो 4 माते ? पाठ होय तो या अर्थ है कि, कबीरजी कहै हैं कि, जातिको मैं जलहा सो राम के रसमें मातते मैं दास कबीर कइवावन लग्यो । पार्षदरूप नो हंस स्वरूप याही शरीरमें पाय गयो, संसारको पार द्वैगया । परमपुरुष श्रीरामचन्द्रको दास द्वै गयो । तुम ब्राह्मणादिक जो रामरस में मतौगे तौकैसे संसारसागरते ना पार होउगे, पारही है जाउगे । कबीरजी रामरसमें मतिकै बचिगये तामें प्रमाण ॥ सायरवीजकको ॥ “हम न मर्दै मरिहै संसारा । हमको मिला जियावन हारा ॥ अब ना मरौ मोर मन माना । तेई मुवा जिन राम न जाना ।। साकत मेरै संत जन जावै । भरि भरि राम रसायन पावै ॥१५॥ इति पहिलाकहरा समाप्त । | अथ दूसरा कहरा ॥ २ ॥ | मति सुनु माणिक मति सुनुमाणिक हृदयाबंदि निवारौहो। अटपट कुम्हरा करै कुम्हरिया चमरा गाउ न बाँचैहो । नित उठि कोरिया बेट भरतुदै छिपिया आंगन नाचैहो॥२॥ नित उठिं नौवा नाव चढ़त है बरही वेरा वारिउ हो । राउरकी कछु खबर न जान्यो कैसे झगर निवारिउहो॥३॥ १ याग्रन्थमें भी और और ग्रन्थन में भी टीकाकार वारवार कवारजाको अजन्मा कह गये हैं संसारमें केंदल साहवकी आज्ञाते आवै हैं ते कोई गर्भ ते उनको आवनो होय नहीं है याते अपर को अर्थ हा ठीक है नीचै का अर्थ क्षेपक जानपरत है वाळे से कोई लाख दियो है ।