पृष्ठ:बीजक.djvu/५०२

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(४५६ ) बीजक कबीरदास । एक गांवमें पांच तरुणि वसं तिनमें जेठ जेठानी हो। आपन आपन झगर पसारिन प्रियस प्रीति नशानीहो ४ भैसिन माह रहत नित वकुला तकुला ताकि न लीन्हाहो। गाइन मा वसेउं नहिं कवहूं कैसेकै पद चीन्हा हो ॥३॥ पथिका पंथ बुझिं नहिं लीन्हो मूढ़हि मूढ़ गवाराहो । | घाट छोड़ि कस औघट रेंगहु कैसे लगबेहु पाराहो ॥ ६॥ जत इतके धन हेरिनि ललईच कोइतके मन दोराहो । | दुइ चकरी जिन दरन पसारिहु तव पैहौ ठिक ठोराहो॥७॥ प्रेम बान एक सतगुरु दीन्ह्यो गाढो तीर कमानाहो । दासकवीर कियो यह कहरा महरा माहि समानाहो ॥ ८॥ मति सुनु माणिक मति सुनु माणिक हृदया बंदिनिवारोहो | श्री कबीरजी हैं कि हेनीव ! तो माणिक है माणिक लाल होय सातै कहां संसारमें अनुराग करिकै लाल द्वैरहे साहब में अनुराग कार लाल होइ गुरुवा लोगनकी वाणी हैं मति सुनु मतिसुनु आपने हृदयकी जो संसाररूपी बंदि ताको निवारु ॥ १ ॥ अटपट कुम्हरा करै कुम्हारिया चमरा गाउ न वाचैहो । नित उठिकोरिया बेट भरतुदै छिपिया आंगन नाचैहो २॥ | काहेते कि अटपट कुम्हरा जो या मन है सो कुम्हरिया केरै है कहे नाना शरीर रचैहै जैसे कुम्हार नाना बासन बनावै है ऐसे या मन नाना शरीर रचैहै। से शरीर जो गाउँ हैं तोन चमरा कालके मारे नहीं बचैहै मन रचत जाइहै। शरीर काल खात जाइ औ कोरिया जे मुनि लोग हैं सत रज तम ग्रन्थ प्रवर्तनवारे ते बेट भरते हैं कहे बनावत जाइहैं तेई ग्रन्थनको लैकै छिपिया जे गुरुवा लोग ते आंगन आंगन नाचै हैं अर्थात् चेला हेरत फिरै हैं नाना मतमें होकै औरनको नाना मतमें लगावत फिरै हैं ॥ २ ॥