पृष्ठ:बीजक.djvu/५०५

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कहरा। | (४५९) किये सो कहरा कहे कहर करनवारो है सो तें आपनो रूपतौ विचारु कहाँ माया दास वैरहै है हैं महरा कहे मायके हरनबारे जे हैं साधु तेही माहिं समान कहे तें तिनके बराबर है जो तें अपने स्व स्वरूपको जानै है ॥ ८ ॥ | इति दूसरा कहरा समाप्त । अथ तीसरा कहरा ॥ ३ ॥ रामनामको सेवहु बीरा दूर नहीं दुरि आशाहो। | और देव का पूजहु वौरे ई सव झूठी आशाहो ।। १ ।। उपरके उजरे कहभो बौरे भीतर अजहूं कारोहो । तनको वृद्ध कहा भो बौरे ई मन अजहूं बारोहो.॥ २ ॥ मुखके दाँत गये का बौरे अंदर दांत लोहके हो। फिरि फिरि चना वाउ विषयके काम क्रोध मद लोभेहो ३ तनकी शक्ति सकल घटि गयऊ मनहिं दिलासा दूनीहो । कहै कबीर सुनो हो संतो सकल सयानप ऊनीहो ॥ ४ ॥ राम नामको सेवहु वीरा दूर नहीं दुरि आशाहो । और देव का पूजहु बौरे ई सब झूठी आशाहो ॥ १ ॥ श्री कबीरजी कहै हैं कि हे कायाके बीरौ जीवो ! रामनाम को सेवन करे राम नाम दूर नहीं है तुम्हारी आशा दूरिहै और देवको हे बौरे का पूनहुहौ इनकी आशा सब झूठी है ॥ १ ॥ उपरके उजरे कह भो वौरे भीतर अजहूँ कारोहो । तनको वृद्ध कहाभो बौरे या मन अजहूं वारोहो ॥ २॥ सुरके दाँत गयेका वौरे अंदर दांत लोहके हो। फिरि फिरि चना चवाउ विपयके काम क्रोध मद् लोभेहो।