पृष्ठ:बीजक.djvu/५१९

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कहरा। | (४७३ ) अथ आठवां कहरा ॥ ८॥ क्षेम कुशल औ सही सलामत कहहु कौनको दीन्हा हो । | आवत जात दुनौ विधि लूटे सरव संग हार लीन्हा हो॥१॥ सुर नर मुनि जेते पीर औलिया मीरा पैदा कीन्हाहो । | कहँलौं गिनें अनंत कोटिलै सकल पयाना दीन्हाहो ॥२॥ पानी पवन अकाश जाहिगो चन्द्र जाहिगो सुराहो ।। वहभी जाहिगो यहभी जाहिगो परत काहुको न पूराहो॥३॥ कुशलै कहत कहत जग विनशै कुशल कालकी फांसीहो।। कह कबीर सब दुनियांविनशल रहलरामअविनाशीहो॥४॥ छूट जाते है जाय अर्थात सर्वज्ञ होय स सदा रहै औ क्षेम कुशल औ सही सलामत कहहु कौन को दीन्हा हो। आवत जात दुनौ विधि लूटे सरव संग हरि लीन्हा हो॥१॥ श्री कबीरजी कहै हैं क्षेम कहे कल्याण स्वरूप सदा रहै औ कुशल कहें सब बातमें कुशल होय अर्थव सर्वज्ञ होय औ सही सलामत कहे जेहिके सहीते जीव सलामत है जाय अर्थात् जहिके अपनाय लीन्हेते जीवको जनन मरण छूट जाय ऐसे जे अपने गुणहैं ते साहब कौने जीवको अपने बिना जाने दोन्ह है अर्थात् काहूको नहीं दीन ऐसे जे साहब हैं सरब संग कहे सत्र के अंतयमी तिनको या काल जीवको आवत कहे जनन औ जात कहे मरन दूनौ बिधिमें लूटयो अर्थात् जब आये तब गर्भको ज्ञान नाशकै दियो औ जब जाइगो तब वही को नाश द्वैगयो साहबते चिन्हारी ना करनदियो ॥ १ ॥ सुर नर मुनि जेते पीर औलिया मीरा पैदा कीन्हाहो । कहँलौं गिनें अनंत कोटिलै सकल पायाना दीन्हाहो॥२॥