पृष्ठ:बीजक.djvu/५२०

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(४७४) । बीजक कबीरदास । औ सुर नर मुनि जे हैं औ पीर ने हैं औ औलिया जे हैं औ मीर जे पादशाहहैं तिनको पैदा करत भये और कहांलौं गिनें अनंत कोटि जीवनको पैदा करि पायना कराइ देतभयो ॥ २ ॥ पानी पवन अकाश जाहिगो चन्द्र जाहिगो सूराहो । वह भी जाहिगोयहभीजाहिगो परतकाहुको न पूराहो॥३॥ कुशलै कहत कहत जग विनशै कुशल कालकी फांसीहो । कहकवीरसवदुनियाविनशलरहलरामअविनाशीहो ॥४॥ पानी औ पवन औ आकाश औ चन्द्रमा औ सूरा कहे सूर्य औ यहभी कहे यह जगत् औ वहभी कहे ब्रह्म से ये सब चले जायँगे सबको काल खाय लियो है काहू की पूर नहीं परी है ॥ ३ ॥ सो कुशलै कहत कहत कहे कुशलै मानेमाने जग सब मरिगयो कुशल कोई न रहे कुशल कालकी फांसी है जाकी फांसीमें सब परे हैं सो कबीरजी कहै हैं कि सब दुनियां बिनशि जाय है जो राम करिकै जन्म बिनाशी है सोई रहिगे अर्थात् रामके दासई अबिनाशी हैं। इनका नाश नहीं होयहै सो या बाल्मीक रामायणमें प्रसिद्ध है अङ्गद हनुमान आदिकनको नाश नहीं भयो है ॥ ४ ॥ इति आठवां कहरा समाप्त । कहे यह जग पर नहीं परी होई न रहे कु अथ नवाँ कहरा ॥९॥ ऐसन देह निरापन बौरे मुये छुवै नहिं कोईहो । डंडक डोरवा तोरि लै आइनि जो कोटिकध नहोईहो॥१॥ उरध श्वासा उपजग तरासा हैकराइनि परि वाराहो । जो कोई आवै वेगि चलावै पल यक रहन न हाराहो॥२॥ चंदन चूर चतुर सब लेपें गल गजमुक्ता हाराहो । चोंचन गीध मुये तन लूटै जंबुक वोदर फाराहो ॥३॥