पृष्ठ:बीजक.djvu/५५

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                  बीजक कबीरदास ।

साहब तो परमदयालु हैं उन को करुणाभई तब कबीरजीको भेज्यो याकहिंकै कि आगे हम तुमको भेन्या हतो सो तुम ग्रन्थबनाइकै बहुत जीवनको उपदेशकरिकै उद्धार कियो सो अब तिहारे ग्रन्थको पाखंड अर्थकरिकै पाखंडी है। कै जीव बिगरे जायँ हैं औ बहुत बिगरिगये सो तुमजाइकै जौन अर्थ तुम बीजकमें राख्येहै सो अर्थ विश्वनाथ सों बनवावो जाते सो अर्थ समुझिकै जीव हमारे पास आवें सो कबीरजी आयकै मोसों कह्यो कि तुम बीजकको अर्थ बनावो हम तुमको बतायेंगे सो उनके हुकुमते मैं बीजकको अर्थ' बनाऊहौं बतावने वाले श्रीकबीरहीजी हैं मोमें ताकत नहीं है जो मैं बनायसकौं और नाभाजी भक्तमालमें लिख्योहै कि “कबीर कानि राखी नहीं बरणाश्रम षटदरशनी' सो इहां कबीरजी को सिद्धात मत मैं कहाँगो औ सर्वसिद्धांतग्रंथ जो मैं बनायॉहै। तामें सबको सिद्धांत यथार्थ राख्योहै सो यहां बीजकके तिलक में साहबको औ कबीरजीको हुकुम यहींहै कि एक सिद्धांत है जो सबतेपरेहै और सिद्धांत सबखंडन लैजायँ सो सबके सिद्धांतनको खण्डन करिकै एक सिद्धांत मैं बर्णन करौहीं सों सुनिकै साहब के हुकुमी जानिकै साधुलोग पंडितलोग और और मत वाले हैं। ते मेरे ऊपर खफा न होयँ प्रसन्न रहैं ना समुझिपरै तौ प्रसन्नहोइकै गुरूसों पूंछिलेईं अब अर्थ लिखैहैं ।

 अर्थ-प्रथम समरथ जे श्रीरामचन्द्रहैं ते आपही हैं दूसरा कोई नहीं रह्यो जो कही उनके लेाक में तौ हंस हंसिनी सब बर्णन करैहैं उनके पार्षद सब ताको बर्णन निर्भय ज्ञानमें विस्तारते हैं सो इहां संक्षेप ते सूचित किये देई हैं ॥ ‘सत्य पुरुष निर्भय निरबानां । निर्भय हंस तहँ निर्भयज्ञाना । ” इत्यादिक बहुत बर्णन निर्भयज्ञानमें कबीरजी कियोंहै तुम एकही कैसे कहौ हौ सो सत्य है उहांके जीव सनातन पार्षद बने रहै हैं औ साहब औ साहबको लोक सनातन बने हैं परंतु उहाँकै पार्षदजीव और उहांकी सब बस्तु साहबहीके रूपहै औ सब चिन्मयहै सो वेद कहैं ॥ श्लोक॥“सर्चि दानन्दो भगवान् सच्चिदानन्दात्मिकास्यव्यक्तिः॥औ वह अयोध्या नगरी ब्रह्मके परेहै ब्रह्म वाको प्रकाशहै औ रघुनाथजी के समीप के जे पार्षद हैं ते साहब स्वरूप तामें प्रमाण ।। * अयोध्याचपरब्रह्म सरयू सगुणःपुमान् ॥ तन्निवासीजगन्नाथः सत्यं सत्यंवदाम्यहम् ॥ १॥ अयोध्यानगरीनित्यासच्चिदानन्दरूपिणी ॥