पृष्ठ:बीजक.djvu/५७४

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। १। (५३०) बीजक कबीरदास । निज प्रकाशमें आप अपनी भूलि भये विज्ञानी । उनमत बाल पिशाच मूक जड़ दशा पांच इह लानी ॥ खोये आप अपन पौ सबौरस निज स्वरूप नहिं जाने । फिरि केवल महकारण कारण सूक्ष्म स्थूल समाने ॥ स्थूल सूक्ष्म कारण महा कारण केवल पुनि विज्ञाना । भये नष्ट ये हेर फेरमें कत नहीं कल्याना । कहै कबीर सुनोहो संतो खोज करो गुरु ऐसा । ज्यहिते आप अपन प जानो मेटो खटका रैसा ॥ ६ ॥ इति पंच देह निर्णय ।। औ जब पांचौशरीर ते भिन्न अपने को मान्यो अरु आपनेको ब्रह्मरूप न मान्य यह भन्यो कि, मैं साहबको अंशहै। यह जान्यो तब साहब याको हंसशरीर देइहै । सो जैसे साहब अनिर्वचनीय रस रूप है ऐसे जीवो है रकार रूप साहब है मकाररूप जीव है न्यूनता येती है साहब स्वामी है, जीव सेवक है, साहब स्वतन्त्र है यह परतन्त्र है साहब की मरजी ते सब काम करै है। जैसे गुण साहबके हैं तैसे याहूके हैं, जैसे साहब नहीं आवै जायहै ऐसे यह नहीं आवै जायहै साहबके पासते । जैसे साहबकी सर्वत्र गति है ऐसे याहू की सर्वत्र गति है साहब के बराबरयाको भोगैहै तामें प्रमाणव्याससूत्रम्॥ * भोगमात्रसाम्यलिंगात् ' तामें प्रमाण घट्दोहावलीको शब्दभी कबीरजीका ॥ “तत्त्व भिन्न निस्तत्व निरक्षर मनो पवनते न्यारा । नाद बिंदु अनहद्द अगोचर सत्य शब्द निरधारा ॥ औ स्थूल शरीर पच्चीस तत्त्वको है पृथ्वी अप तेज वायु आकाश दश इन्द्री पञ्च प्राण मन बुद्धि चित्त अहंकार जीव । सो जाग्रत अवस्था में अनुभव होइहै औ ऋग्वेदहै प्रथमपद गायत्री । औ सूक्ष्मशरीर सत्रह तत्त्वको है पञ्चप्राण, दशइन्द्री मन, बुद्धि, सो स्वम अवस्थामें अनुभव होइहैं औ यजुर्वेद है द्वितीयपदगायत्री । औ कारण शरीर तीनितत्त्वको है चित्त अहंकार जीवात्मा सो सुषुप्ति अवस्था में अनुभवहोइहै सामवेद है तृतीयपद गायत्री । और महाकारण शरीर दुइ तत्त्व कोहै अहंकार जीवात्मा सो तुरीयावस्था में अनुभव होइहै अथर्वणवेद हैं चतुर्थपदगायत्री है । जीव सूक्ष्मवेद