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पृष्ठ:बीजक.djvu/५७५

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साखी । है नी ओंकार पञ्चमपद गायत्री है बचनमें नहीं आवैहै ॥४॥ पंचम पद गायत्री नाम वेद तामें प्रमाण । “निद्रादौ जागरस्यांते यो भाव उपपद्यते ॥ तम्भावं भावयेन्नित्यमक्षयानंदमश्नुते। कैवल्य शरीर एक तत्त्वका है चित्र मात्र है औ जौन ब्रह्मको छठको शरीर मानि राख्यो सो निस्तत्त्व है सो वाको भ्रम है, कुछबस्तु नहीं है । सो ना कोई रामनामको स्मरण करत साहबको जान्या औ पांचो शरीरको त्यागकियो तब साहब हंसशरीर जीवको देईहै जो मनवचनमें नहीं आवै है । सो हंसशरीर अनिर्वचनीय रसरूप है वह निस्तत्त्वहूसे परे। जब प्राकृत रसञहै सोऊ व्यंजनावृत्ति करिकै जानोपरैहै तौ अप्राकृत जो मनवचनके परे है वोको कोई कैसेजानै । सो तौने हेसशरीरमें प्राप्त है कै साहबके पासजाईंकै फिरिनहीं आचैहै । उहाँ मायामनादिकनकी पहुंचनहीं है सो साहबकहै हैं कि हे जावं ! हंसस्वरूप जो छठौं शरीर तिहारो से हमारे पास है तू कहां मनादिकन में लगिकै बिगरे जाउहो तुम हमारेपास आवो । और अर्थ इनको स्पष्टै है अंतमें कछु अर्थ खोले देइ हैं । सो श्रीकबीरजी कहै हैं कि, षट ने हैं छयो शरीर तिनको रैसा कहे झगरा है सो मेटो । जौने ब्रह्म प्रकाशमें तुम भरे रहेही सो वा का छठौ शरीर आपनो मानो हौ सो तिहारो शरीर नहीं है, वामें परे तो पिशाचवत् उन्मत्तवत् ६ जाइ है। जाको भूत लगै है है जो उन्मत्त होइ है ताको यथार्थ ज्ञान नहीं होइ है । सो ऐसा गुरु करो जो साहबको बतावै तब आपनो छठा शरीर हंसस्वरूप पावोगे लोकमें जो साहब देइ है तौने इहां साहब कह्यो है कि, छठी तिहारीही जगा कहे छौं शरीर हंसस्वरूप हमारी जगह में कहे हमारे पास है सो हमको जानोगे कि, वहीं ब्रह्म है तब हमारे दिये पावोगे जौन छठौं शरीर तुम मानिराख्या है औ खोजौही सो तिहारो नहीं है ताते तुम्हारो कार्य न संरेगो ॥ १ ॥ शब्द हमारा तुम शब्दका, सुनि मति जाहु सक्खि । जो चाहो निज तत्त्व को, तौ शब्द लेहु परक्खि ॥२॥ साहब कहै हैं कि, शब्द जो है हमारा रामनाम तीनही शब्द के तुमहो सो रामनाम को सरेखिके कहे बिचारिकै माया ब्रह्म में मति नाहु । जो नि३