सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:बीजक.djvu/५७८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

६५३४) बीजक कबीरदास । शब्दै मारा गिर गया, शब्दै छाड़ा राज ॥ जिन जिन शब्द विवेकिया, तिनको सरिया काज ॥६॥ श्री कबीरजी कहै हैं कि शब्दजे रामनामतौनेको जगत्मुख अर्थमें वेदशास्त्र पुराण नानामतले निकसे हैं तामें जो परयो सो गिरगया अर्थात् संसारमें परयो औ जिन जिन शब्द बिवेकिया कहे सब शब्दनते बिचारकार सारशब्दजो रामनाम ताकोजानि लियो सोई संसाररूप राजको छोड़िदिये हैं औ तिनहीं को कोजसरियाकहे सिद्धभयो है ॥ ६ ॥ शब्द हमारा आदि का, पल पल करै जो यादि । अंत फलैगी माहली, ऊपरी सब बादि ॥ ७॥ गुरुमुख । साहब है हैं हे जीवो! हमारा शब्द जो रामनाम सोई आदिको है। अर्थात् याहीते प्रणव वेदशास्त्र बाण सब निकसे हैं सो याको आदिकहे स्मरण जो पल पल कहे निरन्तर करैगौ तौ अन्तमें फलैगी साकेत जो हमारो महलताको माहली होइगो बसैया होइमो अर्थात तहांको जाइगो और ऊपरके जे सब नाना मत हैं ते वादि कहे मिथ्या हैं अथवा और सब ऊपरके मत बाद विवाद हैं॥७ जिन जिन संबल ना किया, अस पुर पाटन पाय ॥ झाल परे दिन पाथये, संबल किया न जाय ॥ ८॥ श्री कबीरनी कहै हैं कि, अस पुरपाटने जो या मानुष शरीर तौने को पाय कै, जिन जिन पुरुष संवळ न किया कहे सम्यक् प्रकार बल न किया अर्थ मनादिकनको न जीति लियो, साहब को न जान्यो । अथवा संबलकहे जमा, सो परलोककी जमा रामनामको न जानि लियो । “अथवा सन्बलकहे कलेवा सो जो कलेवा साधन लै न लियो अर्थात् भजन न कै लियो सो दिन अथय कहे। शरीर छूटे झालिपरे अर्थात् चौरासी लाख योनि में परयो अब सबल किये। नहीं जायहै ॥ ८ ॥ इहई सम्बल करिले, आगै विषमी वाट ॥ सरग विसाहन सब चले, जहँ बनियां नाहिं हाट ॥ ९॥