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पृष्ठ:बीजक.djvu/५९६

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बीजक कबीरदास । बिरहकी जरी लाकरी है अर्थात् याको साहब को बिरहभयो है सोवह बिरइते ओदी है याहीते सपचै है औगंगुआयहै नानादुःखपावैहै सो जब पांचौशरीर जारजाय हंसशरीरपाय साहब के पासजायँहै तब दुःखते बचैहै । जो कहौ इहांते। सगरोशरीर को जरिजायबों कह्यो हंस शरीरको जरिबो काहे न कह्यो तो हंसशरीर याको न होय वा साहबके दिये मिले हैं त्यहिते याहीके पांचौ शरीर जबजरैहैं तब सतई जगह भूमिकाते नाघिकै आठई भूमिकामें जायहै तब चितमात्र रहि जायहै तब साहब हंसशरीर देइहैं तामें टिकिकै साहबके पासजायहैं सो पा लिाख आये हैं ॥ ७१ ॥ विरह वाण ज्यहि लागिया, औषध लगत न ताहि । सुसुकि सुसुकि मरि मारि जियें,उठे कराहि कराहि॥७२॥ साहबको विरहरूपीबाण नाकेलग्यो अथव जिनको यह जानिपरयो कि हम साहबते बिछोहुदै गयोहै ते विरहवारनको ज्ञान योगादिक औषध नहींलगे है। बिरहबाणाग्निते तप्त जरै है मरिमार नियैहै । याजो कह्या सो बिरहाग्निते जरै है स्थूलशरीरको जब अभिमान छुट्यो तब सूक्ष्मशरीर में नियो, जबसूक्ष्म शरीर छुट्यो तब कारण शरीर में जियो, जब कारणशरीरछूट्यो तब महाकारण शरीरमें जियो, जब महाकारण शरीर छूट्ये तब कैवल्यशरीर में जियो, यही मरिमरिजीबोहै । औ तह कराहि कराहि उठेहै कहे एकौ शरीर नहीं आछे ढगै हैं ॥ ७२ ॥ सांचा शब्द कबीरका, हृदया देखु बिचार ॥ चितदै समझै मोहिं नहिं,कहत भयल युगचार ॥७३॥ साहब कहै हैं कि सँचाशब्द जो कबीरका राम नाम ताको हृदयमें बिचारिकै देखे तो तें चित्तदैकै नहीं समझै है । मोको चारोंयुग वेद शास्त्र में कहतभयो । औ कबीरजे हैं तेङ चारोंयुगमैं कहतआये हैं। सतयुगमें सत्यसुकृत नामते त्रेतामें मुनीन्द्रनामते । द्वापर में करुणामय ना