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पृष्ठ:बीजक.djvu/५९५

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साखी । (५५९) यहब्रह्म ईश्वर माया आदिदैकै जो संसारसागर है तामें बुन्द जो जीवहै सो परचे या सबै जाने हैं कि जीव संसारी द्वैगयो है वेदशास्त्रमें सर्वत्र लिखैहै अरु यह सिगरो संसारसमुद्र बुन्दरूप जीवमें समायजाय है अर्थात् ईश्वर मायाब्रह्ममय जो संसार ताकेा जीवही अनुभव कार लियों है सो नबजीव याभांतिते अनुभवत्यागै कि बिषय इंदीमें इंद्रीमनमें मन चित्तमें चित्त प्राणमें प्राण जीवात्मामें लीनकै देद तब संसारसागर बुन्दरूप जीवमें समायजाय है अर्थात् संसार मिटिजायहै। जीव साहबको जानि जाय है ॥ ६८ ॥ जहर जिमी दै रोपिया, अमि सींच सौ बार ॥ कविरा खलक ना तजै, जामें जन विचार ॥६९॥ जिमीमें जहर को थलहाँदैकै जो बीज बौवे है सो वामें जो सैकड़ों बार अमृतौ सींचै तो वह बीजा में जहरको असर आयबोई करैगो तैसे यह खलक कहे संसारमें मायाकी जिमी है विषय को थलहा है ताते केतिकौ कोई उपदेश करै परन्तु मायाको असर कबिरा जे जीव हैं तिनके आयही जाय है जोई विचारअवै है सोई करै हैं सो संसार नहीं छोड़ें ॥ ६९ ॥ दौकी दाही लाकरी, वाभी करै पुकार ॥ अवजो जाउँ लोहार घर, दाहै दूजी बार ॥ ७० ॥ दावानलकी दाही कहे जरी जो लकरी है सोई लाई भई वहै पुकारकै कहै है कि अब जो लोहारके घरजाउँ तो दूजी बार लोहार मोको दाहै कहे जारै । सो दावाग्नि जोहै ब्रह्मामि तौनेते जो सम्पूर्ण कर्म जरिहुगे तो कोयला रहिनायहै कहे वहै कैवल्य शरीर रहिनायैहै । सो कहै हैं कि, जो अब लोहार जे सतगुरु हैं तिनके इहां जाउं तौ कैवल्यौ शरीर छूटे मुक्त है जाउँ अर्थात् जो साहब को न जान्या औ कर्म सब जरिगये तो कैवल्य शरीर रहिगयो अर्थात् सब संसारहीमें अवैहैं । जो कैवल्य शरीर छूटै तो हंस शरीते मुक्त है जाय काहेते कमनके जरे कैवल्यशरीर नहीं छूटे। ॥ ७० ॥ विरहाक दी लाकरी, सपचे औ गुंगुअाय ॥ | दुखते तवही बाचिहौ, जब सगरो जरिजाय ॥७३॥