पृष्ठ:बीजक.djvu/६०५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

साखी । (५६९) खोजैहैं ये छुवतही मार जायँगे । अर्थात् धोखा ब्रह्म उपदेशदेते में गहि लेईंगे सो अबै तो भला बद्धै भरिहैं नित्यबद्ध नहीं हैं जो कहूं साधुते भेंट द्वैजाय तो उबारहू द्वैजाय जब धोखा ब्रह्म में लागैगो तब वाको न छोड़ेगो साहब | को मत खण्डन करैगो सो तुम ऐसे मरेनको काहे माहौ ॥ ९७ ॥ बिरह भुवंगम पैठिकै, कीन करेजे घाव ॥ साधुन अंग न मोरिहै, जब भावै तब खाव॥९८॥ बिरहरूपी भुवङ्गम कहे साहबको अप्राप्तरूपी जो भुजङ्गम है स पैठिकै करैजेमें घाव करतभयो अर्थात् उत्पत्ति प्रकरणमें साहबकी अप्राप्ति जीवनको होत भई जेहिते साहबते विमुख संसारी द्वै गये । अथवी गुरुवालोग कानमें लगिकै नाना मत नाना उपासना बताय करेजेमें घाव कारिदियेहैं । अर्थात् औरेईमें लगाइके साहबके मिलबेके द्वारको निरोधं कारके साहबकी अप्राप्तिको उपाय अच्छी प्रकार करते भये अर्थात् साहब ते बिमुख करिदिये । सो जेते असाधुर साहबकी भक्तिको कौने जन्मको संस्कार उनको न रह्यो तेतो मारपरे औ जे कौनेहू जन्ममें साहबको पुकारयाहै उपासना कियो है धोखेहु कबइ एकबार सत्यप्रेम के साथ साहब को स्मरण कियाहै सो वाकी वासना बढत बढत बट जाय। आखिर साहबको जानिकै साहबको प्राप्त होय जायेंगे । गुरुवा लोरम् जब चाहें तब उनको खातरहें, धोखामें लगावतरहें धोखामें कबहूँ न लगेंगे । ऐसो जो साधु सो साधु कबहूँ न अङ्गमोरैगो काल उनको जब चाहे तब खाया वे जब जन्मधरेंगे तब साहिबै की उपासना करेंगे उपासना भये सिद्ध करि साहब के पास पहुंचेंगे । तामें प्रमाण “अनेक जन्म संसिद्धिस्ततो याति परां गतिम् ।। जे धोखेहू साहबको जान्येा है ते शरीर धान कारके चौरासीमें नहीं जाइ हैं। और जो साहबको नहीं जाने हैं साहब को स्मरण नहीं कियॉहै ने संसाई मेंह। लगरहे हैं ते चौरासीमें बारम्बार पड़ेंगे। साहबकौ भजन करनवारो चौरासी नहीं जाइहै तामें प्रमाण । चौरासी अंगकी साखीको ॥ * भक्त बीज पटै नहीं, जो युग जाहिं अंनंत ॥ नीच ऊंच घर अवतरै, होय संतको संत ? { अथवा हिबकी अप्राप्तिते नीव सब संसारी भये । ते जीवनमें जें साधु भये साहब