पृष्ठ:बीजक.djvu/६२

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                 आदिमंगल।

वेदभये सो चार वेदहोत भये औ सबते परे ने श्रीरामचन्द्रहैं रकारार्थ तिनको न समुझतभये सो याहीमें एकाक्षरौ ब्रह्मकी औ शब्दहू ब्रह्मकी प्राकट्यभई सो इहां तीसरे ब्रह्मकी प्राकट्यभई १ वहांरकारके अकार को अर्थकरिआयो यहांरकारार्थ श्रीरामचन्द्रको कहौहौ यह कैसे सोरेफवाच्यते जानकी सो श्रीरामचंद्रते बिलग नहीं होयहै याही अभिप्रायते लधुरकारकी जो अकार तौनेके रेफतेसहित कह्यौहै रकारवाच्य श्रीरामचन्द्र को लिख्यो याही प्रमाणके अनुरोधते वोहू रकारवाच्य श्रीरामचंद्रका लिखिदियो सीताराम बिलग नहींहोय तामें प्रमाण । * अनन्याराघवेणाहं भास्करण प्रभायथा वा जानकीको बचनहै ॥ “अनन्याहिं मयासीताभास्करस्यप्रभायथा॥ ये श्रीराम के बचन हैं याही अभिप्राय ते कबीरजी जानकी को बर्णन नहींकियो श्रीरामहीके बणन ते जानकी आईगई काहेते सीताराम में अभेद है तामें प्रमाण । “रामःसीताजानकीरामचंद्र नित्याखंडोंयेचपश्यंतिधीराः इतिश्रुतिः ॥ १० ॥

     दोहा-तव अक्षरका दीनिया, नींद मोहअलसान ।।
       वेसमरथअविगतकरी, मर्मकोइनहिंजान ॥ ११ ॥

तब योगमाया, अक्षर कहे जो एकाक्षर ब्रह्म प्रणव तत्प्रतिपाद्य जो ईश्वर | प्रकट भयो जो जीव, ताको नींद मोह आलस्य देत भई । औं प्रवण औ वेदनते पृथ्वी अप तेज वायु आकाशादिक सब जगत् प्रकट भयो । औ ताही प्रवण वेद नते सब जीवनके नामरूप शुभाशुभ कर्मादिक सब बस्तु प्रकट भई अर्थात् वेदही में सब वर्णित है औ सब के नाम रूप वेदही ते निकसे हैं सो प्रणव रकारही ते प्रकट भयो है औ सब अक्षर प्रकट भयेहैं ताही ते सब वेद भये हैं याही हेतु ते प्रणव औ वेदहू अविगति समर्थ जे श्री रामचन्द्र तिनकी महिमा करीकहे कही । जो वेद तात्पर्य करि कै बताँवहैं तैनेको मर्म कोई न जानते भयो औ प्रणव तात्पर्य करिकै श्रीरामचन्द्रही को कहैं हैं सो अर्थ तापिनका प्रमाण ६ कै लिख्यो है सो मेरे रहस्यत्रय ग्रन्थ में है सो प्रणवअक्षर वेद सब रामनामही ते निकस हैं सो मेरे मन्त्रार्थमें प्रकटहै ॥ ११ ॥