पृष्ठ:बीजक.djvu/६३१

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साखी । (९९३) मूरुख सा क्या बोलिये, शठसों कहा वसाय । पाहनमें क्या मारिये, चोखा तीर नशाय ॥ १७३॥ मूरुख कौन कहावै है कि साधुनके समुझायेते सूझै परन्तु बूझै नहीं है तासों क्याबोलिये । शठकौनकहावैहै कि चाहे नीकौ कोङ बतावै परन्तुछ न हठकीन्हे वाहीमें लागरहै । जौन गुरुवा लोग पहिले बतायनिहै चाहै कूपौमा गिरिपरै पै छाडै न सोऐसलोगन ते कहा बसाय उनको ज्ञानदीन्हे ज्ञानौ खराब होयंगो पाहनके मारे तारही टूटैगो शत्रु मूरुख नहीं समुझै तामें प्रमाण । “पानी कोपाषाण, भीनै तौ बेधै नहीं ॥ त्यों मूरुखको ज्ञान, सूझे तो बृझै नहीं ॥ १७३ ॥ जैसे गोली गुमजकी, नीच परे दुरि जाय ॥ ऐसे हृदया मूर्वके, शब्द नहीं ठहराय ॥ १७ ॥ जैसे गुम्मनमें जो गोलीमारिये तो उँचेपरे दरकिनार्यहै ऐसे मूरुखके हृदयमेंशब्द रामनाम केतौ उपदेशंकारिये परन्तु ठहराय नहीं है एकघरीभर ती ज्ञानरह्यो फिरि ज्योंकोत्यों है गयो । १७४ ॥ ऊपरकी दोऊ गंई, हियकी गई हेराय ।। कह कबीर चारिउगई, तासों कहा वसाय ॥ १७५ ॥ ऊपरकी ऑखिनते यादेख हैं कि साहबके भजिकै हनुमानादिक अजर अमर वैगये जिनकी पूजा देवता करै हैं सब सिद्धि प्राप्त कालशक विष्णु सबते अधिक हैं औ हियेकी ऑखिनते देखे हैं कि हाथिनके पति ऐरावत है पक्षिनको पति गरुड़है भक्तन में महादेवपाति हैं मनुष्यनमें भूपति हैं ऐसे सब ईश्वरनके मालिक श्रीरामचन्द्र हैं तिनको नहीं भजन कैरै है सो श्रीकबीरजी कहै। हैं कि जाकीभीतरौबाहरकी ऑखि फूटिगई तासकहाबसाय ।। १७५ ।। केते दिन ऐसे गये, अन्न रूचे को लेह ॥ बोये उसर न ऊपजै, जो घन वरसैं मेह ॥ १७६ ॥ ३८