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पृष्ठ:बीजक.djvu/६३३

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साखी । |. साहब कहै हैं कि हमतो सबके अच्छे की कही जाते कालते बचिनार्दै परंतु मोको कोई न जानत भयो सो तब भी अच्छा है अबभी अच्छाहै काहेते कि युगयुगमें मैं आन नहीं होउँह दहीवही बनोहौं जो अबहूं मोको जानै तौ ६ कालते बचायलेउँ तामें प्रमाण गोसाईजीको ।। दोहा ।। ‘बिगरी जन्म अनेककी, सुधेरै अबहीं.आज ।।। होय रामको राम जपि, तुलसी तजि कुसमाज ।। . औ कबीरजीने कह्यो है ।। “कह कबीर हम युग युग केही । जबही चेतो तवहीं सही १८० कट कहौं तौ मारिया, परदा लखै न कोई ।। सहाछपापयारतर,को कहिवैरी होइ ॥ १८१ ॥ श्रीकबीर नीऊहै हैं कि जो मैं प्रकट कहै हौं कि तुम लाहबके ही और के नहीं हौ तौ मारन धावै है अर्थात् बदजिवाद कॅरे है औ जे परदे सों है। हौं तौ कोई समुझते नहीं है काहेते नहीं मुझे है कि सहना जो है इन्द्र जी संसारके रचिलियो है सो शरीर जो एयार तामें छपा है साहब के नहीं जानना देइ है प्यार शरीर याते कह्यो कि सार जो साहब का ज्ञान सो निकसि गया है। सो याको कहिकै बैरी होइ ब्रह्म बादिनते औ सहना वो कहा है जो सरकरते पयादा आवै है सो ब्रह्म मायके साथ या मन आयो है साहबका ज्ञान छिदेहै साहबको जानन नहीं देईहै या अहीं सब संसार रचिलिया है तामें प्रमाण । कबीर जी की पद् ॥ संती या मन है बड़ जालिम ।। जासों मासों काम परो हे तिसही छैह मालुम ।। मन कारणकी इनकी छाया तेहि छायामें अटके । निरगुण सरगण मनकी बाजी खरे सयाने भटके । मनहीं चौदह लोक बनाया पाँच तत्त्व गुण कीन्हे । तीनि लोक जीवन वश कीन्हे परे न काहू चीन्हे ।।