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पृष्ठ:बीजक.djvu/६४५

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साखी । (६०७) शुरुमुख । परदेते पानी टारियाकहे गुरुवालोग नये मंत्र वनायकै परदे परदे उपदेशकियो औ सिखापनदियो कि काहूसे कहिये नहीं सब वेदशास्त्र झूठे हैं जीवात्मै सत्य है ताही मानो या समुझायदियो सो वही धरे धूरे जीव नर कको गये जो सँचो राम नाम है ताको न जान्यो वहीं गुरुवनको बताओ मंत्र ताहीके भरोसे सब पूजापाठ धर्मकर्म सब झांडिदियो कहेहै हमनिष्कर्म हैं और यहबात नहीं जानैं है कि भगवान् पूजादिक ये कर्मन में नहीं हैं तामें प्रमा श्रीकबीरजीको।‘‘और कर्म सव कर्म हैं भक्ति कर्म निष्कर्म।कहैं कबीर चुकारिकै भक्ति करौ तजि भर्म ||सो देखा तो भाजीके लियती बाजार में मूड़फेरै हैं भगवानकीभक्ति करिबेको केहहैं हम निष्कर्म हैं पिसानकै चौकार मालपुवा धरिकै चकाकरै हैं आरतीक हैं औ भगवानकी आरती कारबेको कहै हैं हमहीं मालिक हैं हमारी आरतः सब जने करते जाउ सो हे सन्तौ! विचारते ती जाउ यह अपने शरमा शरम में परिमुवाहै या कहें हैं कि हम गुरुवन के उपदेश न छोड़ेंगे या नहीं जानै हैं कि या शरम में हमको औ हमारे गुरुवौ को यम घसीटिडारेंगे नरकमें डारि देयहैं तब मालिक है कै न बचेगे तब कौन रक्षा करेग साहबको तो जनबै न किया । जिन साहबको जान्यो है हनुमान् अंगद कबीरतें अबलौंबने है तेहि ते साहबको भजन करो जेहिते कालते बचिनाउ नहीं तो शरमा शरमीमें नरकमें पाचमरौगे । औ तुम भगवान्को नहीं मानौहौ भगवान्के पाछे नहीं चल हौ सो ब्रह्म राक्षस होइगो तामें प्रमाण ॥ “नानुव्रजति यो मोहाद्रजन्तं जगदीश्वरम् । ज्ञानाग्निदग्धकमपि स भवेद् ब्रह्मराक्षसः ॥ इति पुरुषोत्तम माहीत्म्ये।औ सब झूठा है साहबको भजन साँचा है तामें प्रमाणकबीरजीको।।

    • कञ्चन केवल हरि भजन, दूजी कथा कथीर । झूठा आल जंजाल ताज, पकरो सॉच कबीर ।। १ ।। जो रक्षक है जीवको, नाहिं करो पहिचान ।।

रक्षकके चीन्हे बिना, अंत होइगी हान ॥ २ ॥ तेहिते तुम साहबको भजनकरो जाते साहब के लोकैजाउ जहां कालका गम्यनहीं है हमें प्रमाण ॥