पृष्ठ:बीजक.djvu/६४६

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(६०८) बीजक कबीरदास ।

  • जहां कालकी गमि नहीं, मुआन सुनिये कोई ।।

जो कोइ गमि ताको करै, अजर अमर सो होइ ?' ॥ १ ॥ साहबत बिमुख करनवाले गुरुवालोग यम दूत हैं तामेंप्रमाण ॥॥ नानारू- पधरा दूता जीवानांज्ञानहारकाः ॥ कालाज्ञांसमनुप्राप्य विचरन्तिमहीतले ? ॥२॥ औ कबीरजी चौकामेरघुनाथजीकी पूजा षोड़शही प्रकारकी लिख्यो है तामें प्रमाण । चौकाविधानका शब्द । अगर चंदन घसि चौक पुरावा सत सुकृत मन भावा । भर झारी चरणामृत कीन्हा हेसनको बरतावा । पूरन मौज और रखवारा सतगुरु शब्द लखावा ॥ लौंग लायची नरियल आरति धोती कलश लसावा । श्वेत सिंहासन अगम अपारा सो अति बर ठहराया ॥ छड़े लोक अमृतकी काया जगमें जोलह कहाया । चौरासीकी बंदि छोड़ाया निर अक्षर बतलाया ॥ साधु सबै मिलि आरति गावैं सुकृत भोग लगाया । कहै कबीर शब्द टकसारा यमसों जीव छुड़ाया ॥ १ ॥ पूरण मासी, आदि जो मङ्गल गाइये । सतगुरुके पद परशि परम पद पाइये । प्रथमै मंदिर झराय कै चॅदन लिपाइये ॥ नूतन बस्त्र अनेक चॅदोवा . तनाइये हैं। तब पूरण गुरु के हेतु तौ आसन बिछाइये ! गुरुके चरण परछालि तहाँ बैठाइये । गज मोतिनकी चौक से तहां पुराइये ।। तापर नारियल धोती मिष्टान्न धराइये । केला और कपूर तौ बहु बिधि ल्याइये ॥ अष्ट सुगंध सुपारी लो पान मॅगाइये । पढौ सहित सो कलश सँवारिकै ज्योति बराइये ॥