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बीजक कबीरदास ।
तीने कालते कहे वहीं कालमें काल पाईंकै एकएक ब्रह्माण्डमें तीनतीन देवता ब्रह्मा विष्णु महेश उत्पन्नहोतभये सो कोटिन ब्रह्माण्डनमें कोटिन ब्रह्मादिक भये ते माया के उपदेश ते कई मायाको ग्रहणकरिकै संसारमें चारिखानि जे जीव हैं तिन को सिराजिया कहे उत्पत्ति करतभये सो उत्पत्तिको क्रम ब्रह्मात पहिले कहिआये हैं ॥ १६ ॥
दोहा-चारिवेद षट्शास्त्रऊ, औ दृशअष्ट पुरान ॥ आशा है जग बॉधिया, तीनों लोक धुलान॥१७॥
चारोंवेद, छवशास्त्र औ अठारह पुराण में मायाजो है सो औरई और फलकी आशा बताइकै औरई और नाना मतन में लगाइदियो और संपूर्ण जगत् मुख अर्थकरिकै जगतको बांधिलियो । साहबको भुलाय दियो ये सब तात्पर्य कैकै साहबको कहैहैं सोसाहबको न जानन पाये । ताते तीनों लोकके जीव भुलायगये ॥ १७॥
दोहा-लखचौरासी धारमा, तहां जीव दियवास ॥ चौदह यम रखवारी, चारिवेद विश्वास ॥ १८॥
चौरासीलाख जो योनिहैं सोईंहें धारा ताहीमें जीवको बास देतभये कहेवही चौरासीलाख योनिरूपी धारामें सबजीव बहे जाइहैं अर्थात् नानारूप धारण करैहैं सो चारिवेद विश्वासते कहे चारि वेदके मतते नानामतहोतभये ॥ * शीतलेत्वंजगन्माता शीतलेत्वंजमत्पिता ॥ ?' इत्यादिक नानादेवतनकी उपासनागुरुवालोग बतावत भये । वेद जो तात्पर्य्यकरिकै बतावै है साहब को सो अर्थ न जानतर्भये। औ चौदह यम जीवकी रखवारी करत भये यहजीव निकसिकै साहबके पास न जानपाया। चौदह यमके नाममें प्रमाण ज्ञानसागरको॥दुर्गदचित्रगुप्तबरियारा । ईतोयमके हैं सरदारा । मनसा मल्लअपरबल मोहा।कामसैनमकरन्दी सोहा॥चितचंचल औ अंधअचेता।मृतकअंधजोजीतैखेता ॥ सूर सिंह औरो क्रमरखा । भावीतेजकालकापेखा ॥ अघनिद्रा औ कोधितअंधा । जेहिमाजीवजंतुसबबंधा ॥ परमेश्वर परबल धर्मराजा । पाप पुण्यसबते भलछाजा ॥ यह सब यमैं निरंजनकीन्हा । लिखनीकागदचिकै दीन्हा ॥ १ ॥ "