पृष्ठ:बीजक.djvu/६५४

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(६१६ ) बीजक कबीरदास । | गुरुमुख । : साहब कहै हैं कि अरेरा ! अरेजीव तैंतो बड़ेकोमलं है तब न चेतकियो अब तेरे समीप बैरलागी अर्थात् गुरुवा लोग उपदेश करनलगे अब तेरे चेते कहाभयेा अबतो उपदेश रूप काँटा तोको घेरिलियो मेरे ज्ञानको फारिडारयो अब कहा चेते है तामें प्रमाण ॥ ‘‘आछेदिनं पाछे गये किया न हरिसोंहेत ॥ अब क्या चेते मूढ़तें, चिडिया चुनिगईं खेतं ॥ २३७ ।। जीव मरण जानै नहीं, अंधभया सब जाय ॥ , बादीद्वारेदादिनहिं, जन्मजन्मपछिताय ॥ २३८॥ । सो कबीरजी कहै हैं कि साहब या प्रकारते उपदेश करै हैं है जीवको कोई मरण नहीं जानै है कि हम मरि जायँगे हमारो जनन मरण न छूटैगो • सो एकतौ आंधरही रहे साहबको ज्ञान नहीं रहा तापै गुरुवनको उपदेश भयो ऑधरते आँधर होत जायँ हैं बादीके द्वारे दादि नहीं पावै अर्थात् जासों पूछ। हैं कि हम कौन हैं हमारो जनन गरण कैसे छूटै नरकते कौन हमारी रक्षा कैरै तौ वेतौ बादी हैं साहबको कैसे बतादें और और मतमें लगाय दियो फिरि यादिहू किये साहबके न पायो तातें जगत्में २ पछितायहैं जनन मरण न छुट्यो गुरुवासाहबको ज्ञान भुलाय दियो तामें प्रमाण ।। | बिप्रमोसीको । बिन परशन दरशन बहुतेरे ६ हैं ब्रह्म ज्ञानी ।। बीज विना विज्ञान कथैगो धोखाकी सहिदानी ॥ कृतिम उपासी कर्म बिलासी जायँ ते जन यमद्वारं । हम करता भान करता वैरहे औरै के उपकारं ॥ राम कहेगा सो निबदेगा उलट है जो गाड़ा । धोखा दुदुर बहुत उठेगा राम भक्तिके आड़ा । हिंदू तुरुक दोऊ दल भूले लोक बेद बटपारं ॥ सत गुरु बिना सिद्धि नहिं कोई खिरकी केन उघारं ॥ २३८ ।।