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पृष्ठ:बीजक.djvu/६५५

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साखी।। (६१७) जाकोसतगुरुनामिल्यो, व्याकुलचहुँदिशिधाय ।। ऑखिनसूझैवावरा, घरजाघूरबुताय ॥ २३९॥ गुरुमुख ।। जाको सतगुरु नहीं मिलै हैं सो व्याकुल वेंकै चारों ओर धावै है कहूंब्रह्ममें कहूंनाना ईश्वरनमें नानामतनमेंलॉगै है कि हमारी मुक्ति द्वैनाय सो अरे बावरे तेरी आंखिनमें नहीं सूझै है और औरे मतनमें निश्चय करै है सो घूरहै ताको कहा बुतावै है मेरोरूप औ आपनोरूप ताको तौ जानु या धरतो जरोजाय है ताकोबुताउ जातें जनन मरण छूटै घूर बुताये कहा है ॥ २३९ ॥ अनतवस्तुजाअनौखोजै, केहिविधिआवैहाथ ॥ ज्ञानीसोईसराहिये, पारिखराखैसाथ ॥ २४० ॥ | श्रीकबीरजी कहै हैं कि अनतका बस्तु अनतै खोजै है कहेयह जीव साहबको अंश सदाको दास है तौनका कहै हैं कि ब्रह्म को है देवतनको है ईश्वरनको दासहै सो जौने साहबका दासहै ताकी तो जानबही न कियो आपनो स्वरूप कौनी रीतिते जानै सो हम ते सोई ज्ञानीको सराहते हैं जो पारिख अपने साथ राखे है कि हम साहबके हैं दूसरे के नहीं हैं न ब्रह्मके न मायाके न ईश्वरन के हैं सोई सांचे ज्ञानीको हम सराहते हैं ॥ २४० ॥ सुनिये सबकी, निवेरिये अपनी ॥ सिन्धुरको सेंदोरा, झपनीकी झपनी ॥ २४१ ॥ जहाँ जहाँ सुनिये तहाँ तहाँ साहबहीकी बात निबेरि लीजिये और मत खण्डन करि डारिये काहेते कि वेदशास्त्र सोई है जामें साहबको परत्वहोइ जोकहूं वेदशास्त्रकरिकै साहबको न जान्यो ताको उपदेश यहि रीतिते जैसे सिंधुर जो हाथी ताको सेंदुर शृङ्गाकियों के शुण्डते धूरिभरियो झपनीकी झपनी कहे जैसे रज झपिगई तैसे नवलौं उपदेश सुन्यो तबलो ज्ञानरह्या फिरि नहीं है जौने वेद शास्त्रमें साहबको परत्वहोइ सोई अर्थ । तामें प्रमाण चौरासी अंगकी साखी ॥ “राम नाम निज जानिले, येही बड़ा अरत्थ॥ काहेको पदि पट्टि मेरै,कोटिन ज्ञान गरन्थ ॥२४१ ॥