पृष्ठ:बीजक.djvu/६५९

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साख ।, (६३१) द्वारे तेरे राम जी, मिला कवीरा मोहिं ॥ तूतो सबमें मिल रहा, मैं न मिलौंगा तोहिं ॥ २५२॥ साहब कहै हैं कि हे जीव! तेरे मुखद्वारमें मेरो राम अस नाम बना है ताको भजन करि हे कबीर ! जीवौ मोको मिल जा कहौ कि साहब दयालु हैं वोई मिलिबेकी सामर्थ्य देईंगे सो सत्यहै तेरी या मोको लगै है परन्तु हैं सबमें मिलिरहा है ताते मैं तोको न मिलूंगा औं सब छोड़िदे तो मैं तो आपसे मिलौं आइ ॥ २५२ ।। भर्मपरातिहुँलोकमें, भर्मबस सब ठाउँ ।। कहहि कबीर पुकारिकै, वैसै भर्मके गाउँ॥ २५३॥ कबीरजी कहै हैं कि हे जीव! साहब को मैं कैसे मिले काहेते कि ताने लोकमें कर्म भर्म जो है धोखाब्रह्म सो भरो है तिनमें भर्म बसो है भरमहीमें सब मिलिरहे हैं भरमके पार ने साहब तिन को तो जानबेही न कियो ॥२५३।। रतन लड़ाइनिरेत में, कङ्कर चुनचुनि खाय ।। कहकवीरयहअवसरवीते, बहुरिचलेपछिताय ।।२६४॥ रतन जो है साहब को ज्ञान ताको रेत में लड़ाय कहे लगाय दियो अतिकठोर जो है कङ्कर ब्रह्मज्ञान तामें आत्माको लगायो चुनिनुनि खानलग्यो से कबीर जी कहै हैं कि जब या अवसर बीति जायगो अर्थात् शरीर छुटिजायगो तब पछितायगे वा धोखाब्रह्म में कुछ न मिलैगो ॥ २४ ॥ जेते पत्रवनस्पती, औ गङ्गाकी रेणु ॥ पण्डितबिचारा क्याकहै, कविरकहै सुखबेणु ॥२५॥ सारासारके बिचार करनेवारे पाण्डित तोको केतो समुझावेंगे कबीरजी कहेहै हैं कि नेतो मैं समुझाया है कि बनस्पती पत्र गिनि जायँ औ गंगाकीरेणु गनीगनिजायँ परन्तु मेरे मुखके बैन गने नहीं गिनिजायहैं तऊन तुम बूझयो॥२५५३३ १ पुरानी प्रतियों में इस शब्द के लिये रमाइन' लिखा है ।