पृष्ठ:बीजक.djvu/६६१

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साखी। | (६२३) मुखकी मीठी जे कहैं, हृदयाहै मति आन ॥ कहकवीर तेहियोगसों, रामौ बड़े सयान ॥२८९॥ जो या भाँतिते मनकी त्यागिकै सर्वत्र साहब को देखे हैं तिनको साहब सर्वत्र देखिपरै हैं औ जिनके मनमें औ मुख में आनैआन है तिनको कबीरजी है हैं कि रामऊ बड़े सयान अर्थात् उनले दूरिरहैं हैं ॥ २५९ ॥ इतते सवत जातहैं, भार लदायलदाय ॥ उतते कोइ न आइया, जासों पूछौं धाय ॥ २६०॥ नानाकर्मके नाना उपासनाके नानाज्ञानके भार लदाय-लदायइतते सबञात हैं परंतु उहांते ऐसाकोई न आया जासों धायकै उहांकी खबारपूछौ कि कौनफळपाया सो आपनेहीजन्मकी खबर नहीं जानै साहबकी खबर कहानन ॥२६०॥ भक्तिपियारीरामकी, जैसी प्यारी आगि ॥ सारा पाटन जरिगया, फिरि फिरि ल्यावैमाँगि ॥२६॥ यहभक्ति साहबकी बहुतापियारी है जैसे आगि पियारीहोइ है कि आगि लगी औ सारापाटन कहे शहर जारजाय पुनि आगीकी चाहना बनीहीरहै है पुनि पुनि मांगिलैआवै है आपन करै है काम लोग ऐसे साहबकी भक्ति केतौलोग साहब की भक्तिकरि संसारते पाढ़े गये परंतु अबतक जो कोई भक्ति करै है सो पिआरै होत जाय है संसारते उतरजाय है ॥ २६१ ॥ नारिकहावै पीउकी, रहे और सँग सोइ ॥ जारमीत हिरदै बसै, खसमखुशीक्या होइ॥२६॥ नारितौ अपने प्रीतमकी कहावै है औ आनपति बैंकै सोइ रहै है तौ खसम कैसे खुशी होय ऐसे यह जीव साहब को अंश है और और मतमें लग्यो कहीं ब्रह्म में कहीं माया में सो साहब कैसे खुशी होय ॥ २६२ ॥ सज्जनतौ दुर्जनभया, सुनि काहूकोबोल ॥ काँसातवाद्वैरहा, नहिं हिरण्य का मोल ॥ २६३॥