पृष्ठ:बीजक.djvu/६७७

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साखी । (६४१) सो कबीरजी कहै हैं कि जो जीव साहबको है तौ जौन जौन बस्तु साहबकी है तौनतैौन बस्तुजीवहूकी है पै आपनेको असफाटा कहे जुदाजुदामानै है कि साहबसों मांगै है कि फलानी बस्तु मोको देउ या मूर्ख नहीं समुझे है कि साहबकी शरणभये कौनौ बातकोटोटो न रहिनायगी सो दुरजी जो साहबहै सो कहांतक सीवै कहे आपने में मिलावै ॥ ३२३ ॥ बनाबनायामानवा, बिनाबुद्धि बेतूल ॥ कहा लाललै कीजिये, विनाबासका फूल ॥३२४॥ यह मानवा जो है मनुष्य सो बनै बनावा औ बेतूळ है कहे कौनौ देवता याकी बराबरीको नहीं है पै बिना बुद्धिको है याही ते सबते नीच हैरह्यो हैं बिनाबासको कहे बिना सुगंधको लाल फूल लैकै कहाकैरै ऐसे जीव बहुत सुंदर भयो औ साहबको न जान्यो औरे मतनमें लगिकै लालद्वैरह्यो वा बुद्धिनहीं जाते साहबको बूझै तौ कहाभया तामेंप्रमाण ॥ “कहाभयो जो बड़कुल उपजे बड़ीबुद्धि है. नाहिं ॥ जैसे फूलउजारिके वृथालालझरिजाहिं ॥ ३२४ ॥ साँच बरोबर तप नहीं, झूठ बरोबर पाप ॥ जाकेभीतरसाँचहै, ताके भीतरआप ॥ ३२६॥ या साखीको अर्थस्पष्ट है ॥ ३२५ ॥ . करतॆकियानविधिकिया, रविशशिपरीनहाष्ट ॥ तीनलोकमें है नहीं, जानतसकलौमृष्टि ॥ ३२६॥ कर्ता पुरुष भगवान् नहीं किया न करतार किया न रबि शशि दृष्टि एरीन तीन लोक में खोजेमिलै परंतु सबसृष्टि जानै है सो कबीरजी कहै हैं।क या झूठ कहांते आई है ॥ ३२६ ॥ आगे आगे दुव बरै, पीछे हरियर होइ ।।। बलिहारी वा वृक्षकी, जर काटे फल होइ॥ ३२७॥ कर्ता जगत्को बनायो सो कैसा है ताको केहहैं आगे आगे व बरै आगे शरीर सबके जरत जायहै औ पीछे हरियर होयह कहे नये नये शरीर धारण होत हैं।