पृष्ठ:बीजक.djvu/६८६

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(६५०) बीजक कबीरदास। सुरातिसंभारै। सो ऐसे पिताकी बात मानु यह झूठसनेह छोड़िदे जो आपने को ब्रह्म मानिकै बैठे हैं कि महीं ब्रह्महौं यह ब्रह्मतो मनको अनुभवहै झूठा है जीव ब्रह्म कबहुं नहीं होय है ॥ ३४४ ॥ सबै आशकरशून्यनगरकी, जहां न कर्ता कोई ॥ | कह कबीर बुझौ जियअपने, जातेभरम न होई॥३४॥ सबै वह शून्यनगरकी आशाकरै हैं जहाँ कोई कर्ता नहीं है सो वह तों झूठगहै सो कबीरजी कहै हैं कि तुम अपने मन में बूझौ तौ उहांती कर्ता हई नहीं है औ जगत् बनैहै तौ कौन जगत को कियो है तेहिते निराकार अकर्त ब्रह्म कहनूति जो कहो हो सो सब झूठी है सो यह तुम आपने जियमें बूझौ जेहिते ब्रह्मवाले भ्रम तुमको न होइ ॥ ३४५ ॥ भक्तिभक्ति सबकोई कहै, भक्ति न आई काज ॥ जहँको किया भरोसवा, ताँते आई गाज ॥ ३४६॥ भक्तिभक्ति सबकोई कहै हैं औरे औरे देवतनकी भक्ति करै हैं सो वा भक्ति । कौनौ काज न आई जेहि जेहि देवको भरोसा किया तहांते गाजआई कहे वें । सब काल स्वरूपहैं सब याको मारिकै आपने लोक लैगये जब महाप्रलय भई तब इष्ट औ उपासक दोऊ न रहे पुनि जब जगदकी उत्पत्ति भई तब कम्मूनुसार वऊ उत्पन्न भये ॥ ३४६ ॥ समुझौ भाई ज्ञानियो , काहु न कहा सँदेश ॥ जेई गये बहुरे नहीं, है वह कैसा देश ॥ ३४७ ॥ हे भाई ज्ञानिउ तुम समझते जाउ तौन तुम ब्रह्म ब्रह्मकहौ हौ तहां को संदेश कोई न कह्यो कहे सव वेदांत ब्रह्मज्ञानी कहै हैं कि वाको तो हमकहीं नहीं सकैहैं धौंकेसोहै औ जे उहां गये ते बहुरकै न आये जो बहां को सन्देश बतावैं अर्थात् कुछ न हाथे लग्ये ॥ ३४७ ॥ धोखे सबजग बीतिया, धोखे गई सिराइ ॥ स्थितिनाकरै सो आपनी, यहदुख कहा न जाइ३४८॥