पृष्ठ:बीजक.djvu/७००

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(६७०) बघेलवंशवर्णन । तुमहीं राजा अहौ हमारे । निशि दिन सेवन करब तिहारे ॥ भये खुशी केहरीसिंह सुनि । करि नवाबको अति खातिर पुनि॥ भवन जानकी दई बिदाई । गयो सो बार बार शिरनाई ॥ नृप केहरीसिंह सहुलासा । कछु वासर तहँ किया निवासी ॥ सरदारनको करि सन्माना । सब चकरनको सहित विधाना ॥ दिय चिट्ठा चाकरी चुकाई । वसे सबै सेवा मनलाई ॥ दोहा-तहाँ केहरी सिंहके, माल केसरी पूत ॥ होत भयो जाके वदन, वसी सरस्वती पूत ॥३७॥ उभय मल्लको जोर तनु, सुंदर तेज विधान ॥ कछ दिनमै तेहि व्याहकरि दीन्ह्यो दान महान ३८॥ फेरि व्यतीत भये कछुकाला । तनु तजि करि केहरी भुवाला ॥ वास किया वासवपुर मांही । मालकेसरी सपदि तहाँही , ॥ विधि युतमृतकक्रिया पितुकेरो । करि दीन्ह्यो तहँ दान घनेरो ॥ मालकेसरी कछु दिन माहीं । उपनायो सुंदर सुत काहीं ॥ सारंग देव नाम तेहि भयऊ । सुयश प्रताप नाम तेहि ठयउ ॥ भीमलदेव भयो सुत तासू । फैल रह्यो जगमें यश जासू ॥ हरिगुरुको भो भक्त महाना । पाल्यो परजन प्राण समाना ॥ ब्रह्मदेव ताके सुत जायो । सो निन पितुसों वचन सुनायो । दोहा-आप कीजिये भजन हरि, सुचित भौन करि बास ॥ मोहि दीजिये फौज सब, कार उर कृपा प्रकाश ॥३९॥ कछु दिन सैर करौं महि माहीं । प्रकटहुँ नाम रावरे काहीं ॥ सुनि नृप भीमलदेव उदारा । ब्रह्मसूनु सों वचन उचारा ॥ मनमें यह विचार किय नीको । केरै सुपूती सोइ सुत ठीको । जगमें नहिं कुपूत कहवायो । अस करतूति करन मन लायो । ब्रह्मदेव सुनि ये पितु वैना । करी तयारी भरि अतिचैना ॥ चतुरंगिनी चमू सँग लैकै । कियो फ्यान वीररस म्वैकै ॥ राज्य गहरवारनके आयें । कछु वासर तहँ वसि सुख छाये ॥ पुनि सिधाय शिरनेतन देशू । तहँ विवाह किय ब्रह्म परेशू ॥