पृष्ठ:बीजक.djvu/७०२

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१ ६५४ ) बघेलवंशवर्णन । सँग चलीसैन्य विशाल, सेनप लसे सम काल । सुन सहित सैन समेत,विरसिंह नृप सुख सेत ॥ ९ ॥ नियरान चित्रहिकूट, तब सुन्यो शाह अटूट ॥ निज फौज दियो निदेश, तहँ भै तयारी वेस ॥१०॥ पयस्वनी सरिके पार, विरासंह भूप उदार ॥ जब गयी हलकारान, किय विनय जोरे पान ॥११॥ सुनु खोदावंद हवाल, बड़ी सैन्य आवति हाल ॥ सुनि बादशाह उमाह, भरिबैठ तख्तहिं माह ॥१२॥ विरसिंहदेव भुवाल, गजते उतरि तेहि काल ॥ टिग शाह चाल अभिराम, बहुभांति कियो सलाम१३ समभानु पुनि विरभान, हयको उघाटि भहान ।। गजमस्त कै परजाय, बैठत भयो सुख छाय॥ १४ ॥ लिखि साह तब हरषाय, तेहि तुरत निकट बोलाय॥ लिय तख्त में बैठाय, बहु विधि सराहि सुभाय॥१६॥ पुनि कह्य बाँकवीर, तुम सम ननिडर सुधीर ॥ तुम कहके अहौ नरेश, काहे चल्यो परदेश ॥ १६ ॥ सोरठा-केहि कारण मम देश,लूट्यो सो नहिं नीक किय॥ शाह वचन सुनि वेस,वीरभानु बोलत भयो॥४९॥ हम क्षत्री बघेल हैं रूरे । वासी थल गुजरातहि केरे ॥ आप हमारे हैं सति स्वामी । हम चाकर राउर अनुगामी ॥ निज करतब देखायचे काहीं । आये हम यहि देशहिं माहीं ॥ जो रिपुता करि हमको मारयो । ताकी हमहूं सपदि सँहारयो । तुज देशहिको द्रव्य न खायो । निज कोहिको वित्त उठायो । जो नृप हमको तेज देखायो । ताहि दडदै फेरि बसायो । सो आपहिकी बदिकार दीन्ह्यो । वृथाकोप हमपर प्रभु कीन्ह्यो । यह सुनि बादशाह कह वानी । यहि बालक की बुद्धि महानी ॥