पृष्ठ:बीजक.djvu/७०३

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बघेलवंशवर्णन । (६७६) दोहा-पुनि कह विरसिंह देवसों, तुव सुत बड़ो निशंक ॥ रणरिघुगण जीतन प्रबल,बीर धीर अतिवंक ॥५०॥ छंदहरिगीतिका-तुव पूत बड़े सुपूत है वंशतिहरे माहिं॥ नृप द्वादशैको भूप होई अचल भूमिसदाहिं ॥ यह भाषि शाह उछाह भारि वारहोंनृपकी राजि ॥ दियवखशिसादर नानकारहि कह्यो भाई भ्राजि । गिरि विंध्य बाँधव दुर्गके तुम ईश होहु प्रसिद्ध ॥ नृप सकल महके करहिं सेवा होयसिद्धि समृद्ध ॥ लिखिदियो विरसिंहदेवको पुनि भूप शाहसमेत ।। चलि प्राग करि स्नान दिय बहुदान द्विजनसचेत ॥ तहँ भूप बहु सन्मानकरि कीन्ह्योनिमंत्रण शाह ॥ पुनि शाह दिल्लीको गयो प्रागतिं वस्यो नरनाह । विरसिंहदेव विवाह किय सुत वीर भानुहिँकेर ॥ सव जमींदारनको निमंत्रण दियो आये ढेर ।। ३ ।। दिय दान द्विजन महानयुत सन्मान मोद अमान ॥ सरसान सकल जहान बिच किय गायकन बहुगान॥ गज बााज धन मणिमाल वसन विशाल दै सब काह॥ करि मान किय सबकी विदा विरसिंह सहित उछाह॥ दोहा-जमींदार निज निज सदन, जातभये हर्षाय ॥ । त्यहीं याचक गुणीजन,गये अमित धन पाय ॥५१॥ करिकै सविधि क्रिया पितु केरी । विरसिंहदेव द्विजन बहु हेरी ॥ विविध विधान दान बहु दीन्ह्या । युत सन्मान विदा बहु कीन्ह्यो । कछु वासर करि वास प्रयागा । विरसिंहदेव भूप बड़ भागा ॥ बोलि ज्योतिषिन सुदिन शोधाई । चकरनको चाकरी देवाई ॥ करि खातिरी कह्यो तिनपाहीं । काल्हि सुदिन हमरो सुख माहीं चलो सबै वांधव गढ़ देखी । सुनत वीर है सयुग विशेखी ॥