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पृष्ठ:बीजक.djvu/७०९

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बघेलवंशवर्णन। ( ६८१ ) जापितसेन स्वरूप धरि, हरि जिनके तनु मोहिं ॥ तेल लगायो राम सी, कहियकहिं नृप काहिं ॥७३॥ वीरभद्र तेहि सुत भयो, वीरभद्र कर संत ॥ आगे वर्णी औरहू, भये जे नृप मतिमंत ॥ ७४ ॥ वीरभद्र सुतविक्रमादित्य भयो अवदात ॥ नामहिके अनुगुण भयो,जेहि गुण जग विख्यात ॥७॥ लीन्ह्यो जायरझाय जो, निज करतूतहि माहि ॥ ब्रह्मके मारे मरिलह्यो, सोन देव पुर काहिं ॥ ७६ ॥ अमरसिंह ताको सुवन, सरिस अमरपति भोज ॥ रीवा रजधानी करी, सींवा यश अरु वोज ॥ ७७॥ दिल्लीको गमनत भयो, चुक्यौ खर्च मग माहि ॥ लुटि दौलताबादको, गयो शाह ढिग पाहिं ॥ ७८ ॥ उमरावन चुगुली करी, शाह निकट द्रुत जाय ॥ बादशाह मान्यो नहीं, नृप पै खुशी बनाय ॥ ७९ ॥ अमरसिंह भूपालकै, भो अनूपसिंह भूप ॥ भूपर जासु प्रताप यश, छायो परमअनूप ॥ ८० ॥ भावसिंह ताकी तनय, भयो भानु सम भास ॥ दाता ज्ञाता वीरवर, ज्ञाता बुद्धि विलास ॥ ८१ ॥ जगन्नाथजी जायकै, मूर्ति लाय जगनाथ ॥ थापिव्यासके ग्रंथको, संच्यो भरि सुख गाथ ॥८२॥ राना घरमें व्याहभो, तहते मूरत दोय ॥ लाये सरस्वति गरुड़की, थापित किय मुदमोय ॥८३॥ विप्रन दान महानदै, कीन्हे बहु सन्मान ॥ तिनके में अनिरुद्ध सिंह,भूपति परम सुजान ॥ ८४॥ ताके भो अवधूतसिंह, जाहिर दान जहान ॥ ताके सुवन अजीतसिंह, दुवन अजीत महान ॥८५॥