पृष्ठ:बीजक.djvu/७१०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

(६८२) बघेलवंशवणन । जाकै गौहरशाह बसि, जायो अकबर शाह ॥ सैन्य साजि जेहिं तख्तमें,बैठावत नरनाह ॥८६॥ जाजमऊल जायकै, दिल्ली दियो पठाय ॥ अँगरेजहुँ अठवर्नको, दीन्ह्यो जंगभगाय ॥८७}} तासु तनय जयसिंहभो, जयमें सिंह समान ॥ जाहिर दान कृपानमें, भक्तिवान भगवान ॥८८३ दशहजार असवार लै, पूनाको हारोल ।। आवतभी यशवंत तेहिं, हत्या प्रताप अतोल॥८९॥ गहरवार करि गर्व बहु, लीन्हे देश दवाय ॥ तिनको मार भगाय दिय,बचे ते गिरिन लुकाय९० देश आपने अमल कर, ६ विप्रन बहु दान ॥ अंत समय तनु प्राग तजि,हरिपुर कियो पयान॥९॥ विश्वनाथ नरनाथभो, तासु तनये यशगाथ ॥ रति अनन्य सियनाथपै, भई जानु महिमाथ ॥९२॥ सार सर घर घर पुर पथन,छयो राम गुणगाथ ॥ किती परीक्षित कै कियो, कलि कृतयुग विश्वनाथ९३ तासुतनय रघुराज भो, महाराज शिरताज ॥ राजत राज समाजमधि,जाको सुयश दराज ॥२४॥ श्रीकबीरजी कथित यह है विचित्र नृप वैश ॥ नहिं असत्य मानै कोऊ, जानि संत अवतंश ॥९॥ सतयुगमें सत नाम रह, अरु मुनींद्र त्रेताहिं ॥ करुणामय द्वापर रह्यो, अब कबीर कलि माहिं ॥९६॥ | कवित्त ।। नृपति उदार केते भये अनुसार मति तिनके अपार गुण यश कियो गानहै ॥ जनम करम भूप रघुराजको अनूप धरमको जूप दिव्य जाहिर जहानहै ॥ देख्यो निज नैन ताते भरो अति चैन उर करत निज वैन सविधि बखान है ।। कई युगलेश है झूठको नलेश कहूं मानि है विशेष सांच सोई बड़ो जान है ॥ १॥