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पृष्ठ:बीजक.djvu/७११

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बघेलवंशवर्णन । ( ६८३) छंद-कह्यो कबीर भविष्य राम नृप सुनि सुखराशी ॥ | हंसिनि सुवचन कुवरि रानि तू हंस प्रकाशी ॥ वीरभद्र तुव सुतहु हसः नित हार ढिग वासी ॥ गुणगंभीर अति वीर धीर यश सुयश विलासी ॥ जब दशै वंश अवतंस नृप, प्रगट होयहै तू अवशि ॥ तब सति परिहरि नरेशकुल,जनमीयतुवतियहुलसि?' दोहा-तासों तेरो होयगो, सुखप्रद प्रथम विवाह ॥ वीरभद्र यह तेहि उदर, वैश इग्यरहे माह ॥९७॥ जनमि देयगो तुमहि अति,परमप्रमोद विख्यात ॥ तेजवंत क्षिति छाय है यश अनंत अवदात ॥९८॥ समय विजय करसिंहतो, भो जयसिंह भुआल ॥ गैंगलियो अगवान जेहि, तनु त्यागनके काल ॥९९॥ प्रगट भयो ताके तनय, हंस जो कह्यो कबीर ॥ विश्वनाथ तेहि नामभो, परमयशी रणधीर ॥१००॥ रघुपति भक्त अनन्य अति, अरु ब्रह्मण्य शरन्य ॥ अग्रगण्य क्षिति नृपनमें, तेग त्याग जेहिं धन्य ॥ १ ॥ तेहि आहिक गुण तेज यश, और अमित चरित्र॥ मैं विचित्र वर्णन कियो, ग्रंथ सौपरमपवित्र ॥२॥ देखहिं श्रद्धावान जे, हौवें मनुज सुजान ॥ और करहुँ बखान कछ, निजमतिके अनुमान ॥ ३ ॥ रानी सुवचन कुँवरिभै, पुरी उचहरा माहिं ॥ सुता भई शिवराज नृप, व्याहिगई तेहि काहिं ॥ ४॥ पढ्यो भागवत ताहिमें, दृढभो तेहिं विश्वास । गुण यश अनुपम तासुभे, किय जो कवीर प्रकाश ॥ ५ ॥ विश्वनाथ नरनाथकी, तिय स अति अभिराम ॥ कुँवरि सुभद्रा नाम जेहिं, सरिस सुभद्रा आम ॥ ६ ॥