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पृष्ठ:बीजक.djvu/७१३

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बघेलवंशवर्णन । जगत शरीर अनित्यहि जाना । मरत सो जीव नित्य ध्रुव मानों ।। अजर अमर तेहि गावत वेदा । वृथा करत तेहि हित नरखेदा ॥ दोहा-सुनि सुनि कहे प्रसन्न मन, ते अति हिय हर्षात ॥ है ये पुरुष पुरानकोउ, पाल रूप दर्शात ॥ ११० ॥ कछु दिनमें पुनि जाय प्रयागा । नृप जयासह तुरत तनु त्यागा ॥ श्रीविश्वनाथ राज पद पायो । रघुराजहु युवराज कहायो ॥ रहे उर्मिलादास सुसंता । भक्त अनन्द उर्मिलाकंता ॥ चलि चलि तिनके आश्रम माहीं । दर्शन तिनको केरै सदाहीं ॥ मंत्र लेनको बड़े उमाहा । विनय कियो तिनसों सउछाहा ॥ प्रभु मोहिं मंत्र कृपाकर दीजै । मेरो जन्म सफल जगकीजै ॥ नाथ कह्यो तबत हरषाई । मेरे रूप संत यक आई ॥ देहैं तोहिं मंत्र सहुलासा ! वैहै सिगरे जगत् प्रकासा ॥ दोहा-तोहिं देनको मंत्र मोहि, है नहि लखन नियोग । मेटिहै तुव भव साग सोई, ध्रुवलखिहै सब लोग११॥ छेद-स्वामि मुकुंदाचार्य्य शिष्य यक संत रह्यो अभिरामा॥ नाम जासु लक्ष्मी प्रपन्न ढिग विश्वनाथ निष्कामा ॥ मंत्र लेनकी इच्छा गुणि मन श्रीरघुराजहि केरो ॥ भाषि गयो भूपतिसों निज गुरु भक्ति प्रभाव घनेरो १॥ आश्रम परम मनोहर तिनको ब्रह्मशिला तट गंगा ॥ प्रियादास जे गुरू आपके तिनको रह सतसंगा ॥ भक्ति ग्रंथ पठे तिनके बहु वाल्मीकि रामायन ॥ श्रीभागवत भागवत पूरे पढ़त निरंतर चायन ॥ २ ॥ लायक गुरू विशेष होनेते नरनायक सुत केरे ॥ आय होय बोलिलै आऊ एहैं विनती मेरे ॥ विश्वनाथ कह आप सरिस शिष जिनके जगत सोहाहीं जो काहिसकै महामहिमा तिन कोई अस महि माहीं॥ श्रीराना जमानसिंह जासों लियो मंत्र उपदेश ।