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बघेलवंशवर्णन। घनाक्षरी ।। सन्मुख बैठि छवि निरखन लागे चख अंग अंग केरी उर हरष वढ़ायकै ॥ ताही समै नाथजीको हाथ लै पुजारी ऐना लग्यो दरशांव मेोद गाथ हिये पाइकै॥ ग्रीवानाय हरि तब बदन लखन लागे लखि रघुराजसिंह अचरज छायंकै ॥ रण दवनसिंह सों कह्यो या तू देखी कला भाष्यो तिन होहूं लख्यो नैन टक लायकै१॥ दोदा-कृपानाथजी आपके, ऊपर करी महान ॥ सुनत पुजारीहूं कह्यो, यहां प्रगट भगवान ॥ ४५ ॥ राम सागराहिक अहै, विश्वनाथ कृत जौन ॥ बखतावर गायक लगे, गावन तिन ढिग तौन ॥ १६ ॥ गावत सन्मुख निरखिकै, तहां पुजारी कोय ॥ आयकह्यो अस बैठियो, रानडुको नहिं होय ॥ ४७ ॥ | कवित्त ।। दीन्ह्यो सो उठाय बखतावर विचार यह हरिसर्वत्रअहै और ठौर नायकै ॥ प्रेम पूर पागे लागे गाबै राग सागरको प्रभु को रिझाय लिया सुरनको छायकै ॥ उघरे कपाट सबै आपही सो ताही समै टेरिकै पुजारी कह्यो बाहेरहि आयकै ॥ नाथको निदेश अहै लेहू वह गायकको इतही बोलाय बैठि गाँवै हरषाइकै ॥ दोहा-कह पुजारि तुम्हरे उपर, रीझेहैं ब्रजराज ॥ सुनि बखतार कह्यो सति, यह प्रभाव रघुराज॥ ४८॥ साहितचमू चतुरंगिनि भाई । पुनि रघुराज शिविर निजआई ॥ कछु वासर किय सुख युत वासा । राना मान्यो परम हुलासा ॥ सीखदेन अवसर जब आयो । तब राना निज निकट बोलायो । श्रीरघुराज समाज समेतू । गमनत भयो तहां मति सेतू ॥ लै आगू राना चलि धामै । बैठायो गद्दी आभरामै ॥ कीन्ह्या सकल भांति सत्कारा । दीन्ह्यो हय गय वसन अपारा ॥ भूषण बहु पुनि दिये अमोले । ज्योतिमान मणि मोतिन नोले ॥ विश्वनाथ नरनाथ कुमार । राना सो पुनि वचन उचारा ॥ दोहा-आप सुजान सयान हैं, मेरे पिता समान ॥ दीजै संमत तासु प्रभु, जो मैं करौं बखान ॥ ४९॥