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पृष्ठ:बीजक.djvu/७२०

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(६९२) बघेलवंशवर्णन । कवित्त ।। करिकै पेसवाई महाराना श्री स्वरूपसिंह उदेपुर आनि मुदै उरकै दराजका ॥ सकल सुपास जहां दीन्ह्यो जनवास तहां कीन्ह्यो सन्मान दे हुलास त्यों समाजको। लखि लाख नारी नयन नृपति किशोर सारी मैन वस भई छॉडी ऐन काज लाजको॥ कहैं ठाम ठाम कैधौं काम सुखधामधाम काम त्यागि जो हैं जन ग्राम रघुराजको १॥ लगन विचार कह्यो नादिन गणक गण तादिन पधारयो रघुराज बारमाह है ।। देखिकै वरात शोभा पुरजनवातलीभा रानंहुको भा अथाह भारी उतसाह है ।। व्याह भयो छोनीमें उछाह छायो महा तहाँ याचक उमाह भरो यांचिभो अचाहहै। राह राह कहत न ऐसो नर नाह कहूं सुन्या सांच शाहनको करन पनाहहै ॥ दोहा-रहस वहस शुत होत भौ, पुनि उदार जेवनार ॥ सरदारन चुत फेरि भो, दरबारहुँ दरबार ॥ १४० ॥ कवित्त । जेते ऐंडदार राना राजत पछाह माहँ शाहन सों अकस जे कान बनायकै ।। कलम विनाही लिखे हिम्मत न रही काहू महाराना सुता जो विवाहै सुख छ,येकै महाराज विश्वनाथ सुत रघुराज सिंह अचरज कीनी करतूति तेज छायकै ॥ सुनि सुनि ते वैन नरराय पछितायमहा हाथ मीजिरहे शरमाय शीशनाइके ।। दोहा-शिव यकलिंग प्रसिद्ध तहँ, तिनके दर्शन हेत ॥ जातभयो रघुराज पुनि, मंत्री सैन्य समेत ॥ ११ ॥ हय गय अरु मुद्रा सहस, सादर तिनहिं चदाय ॥ दर्शन लीन्ह्यो सरस उर, सरस हरस सरसोय ॥ ४२ ॥ महाराज विश्वनाथ सुत, श्रीरघुराज उदार ॥ फेरि नाथजी दरशहित, गये साथ सरदार ॥ ४३ ॥ साजि वाजि गज वसन वर, मोहर शत सुख साथ ॥ माथनाय अर्पण कियो, पद पाथज श्रीनाथ ॥ ४४ ॥