पृष्ठ:बीजक.djvu/७२६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

(६९८) बघेलवंशवर्णन। रमा द्वारकाधीशकी, त्यों बलकी कार सूर्ति ॥ हेम रजत रचवायकै, परभ मनोहर मूर्ति ॥ ६३ ॥ वेद विहित करवायके, आसु प्रतिष्ठा वेश ॥ बांधबेश विश्वनाथ सुत, पूजन करत हमेश ॥ ६४ ॥ करन लगै जप जेहि समय,तब भार मोद अनंत ॥ भजन सुनै भजनीनसों, निर्मित निज बहु संत॥ ६६॥ सुदिन राज्य अभिषेक को, आयो जब मुदवान ॥ सब तदवीर महान भै, वेद विधान प्रमान ॥ ६६ ॥ श्रीरघुरान जाय मखशाला । वसु मैत्रिनते सहित उताला ॥ रघुपति यदुपति मूरति काहीं । थिति कै हेमसिंहासन माहीं ॥ महाराज अभिषेक कराई । अभिषेकित भो र सोहाई ॥ श्रीकृष्णहिके कृपापात्र कर । अधिकारी भो विदित अवनिपर । कर परताप छयो परतापा । सज्जन सुखप्रद सुयश अमापा । पितु सम पालत प्रजन सप्रीती । नीति रीति करि. मेटि अनीती ॥ सुनि सुनि शाहहु जाहि सराह्यो । आय अनंट लाट भल चाह्यो । राज्य करत बत्यो कछु काला । दर्शन हित जगदीश कृपाला ॥ दोहा-करि लालसा विशाल लै, संग चमू चतुरंग ॥ • रानिन युत जगपति पुरी, गमन्यो सहित उमंग ॥ ६७ ॥ बीच बीच वीथिन करि वासा । श्रीरघुराज राज सहुलासा । शतक संस्कृत यक जगदीशा । विरच्यो मैं निज ऑखिन दीसा ॥ भाषा शतक कवितमें दूजो । विरचन लग्यो सो उमग पूजो ॥ परयो अमर कंटक मग माहीं । गमनत भयो नाथ ताँकाहीं !! मेकल गिरिते कढ़ि तहँ प्रगटी । शिव प्रिय रेवा सरि अघ निघटी । तहँ मज्जन करि दै बहु दाना । रेवा अष्टक रच्यो सुजाना ॥ शिवअष्टक पुनि रच्या तहांहीं । सिंहवलोकन छंदहिं माहीं ॥ | रहे जे संत विम त वासी । तिनको देत भयो धन राशी ॥