पृष्ठ:बीजक.djvu/७२८

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(७००) बघेलवंशवर्णन । सत्य कहै रघुराज हौं आज अनेकन जन्मके पाप नशायो । जो बलभद्र सुभद्रा सुदर्शन औ जगनाथको दर्शन पायो । लोचन सासुहे होत जबै तब देखनकी नहिं चाह सिराती॥ आनँद बा है जितो उरमें मिति तासु न मोसों कछू कहि जाती। को रघुराज बखानि सकै जगदीशकी शोभा त्रिलोक विजाती॥ ज्यों ज्यों समीप है हैरै त्यों त्यो क्षणही क्षणमें सरसै दरशाती ३ घनाक्षरी ।। कन्चनको छत्र उभय चौर विननादिनोळ भूषण वसन त्या अमोल मोतिमालका। मोहर अमित मुद्रा बै गयन्द त्यों तुरङ्ग प्रभुहिं समर्पि पायो परम निहालको ॥ भप रघुरान त्यहि दैकै सबहीको वसु नजर देवायो तहां देवकीको लालकों ॥ पंडा आ पुरीकै भये परमसुखारी पाय पाय धन भारी गाये सुयश विशालकों ॥ सोरठा-कहत मनाहिं मन नाथ, सो मैं करौं प्रकाश अब ॥ को समान जगनाथ, है कृपालु यहि जगतमें ॥ १ ॥ विविर जाय सुख पाय, पायो महाप्रसादपुनि ।। तहँके तीर्थ निकाय, जाय जाय सादर कियो ॥ २ ॥ रानिहु सब सुखपाय, त्यहीं नजर निकाइकै ॥ जगपति दरश सोहाय,करि मान्यो सफलै जनम॥३॥ दोहा-बेखटका अटका अमित, चटकै दियो चढ़ाये ॥ मटका मटका लै गये,कोऊ सटका खाय ॥ ७२ ॥ महाराज रघुराज उदारा । अरुणखम्भ ढिग पुनि पगु धारा ॥ देश देशके जन बहु आई । जुरे पुरीके जन समुदाई ॥ पेखि अनूप भूपकी शोभा । सबहाको बरबस मन लोभा ॥ तहँ नृप नायक परम सुजाना । हेम तुला चढ़ि वेद विधाना ॥ सुवरण वृष्टि करी मन भाई । मानौ मघा मेघ झारेलाई ॥ रह्यो न पुरी कोउ दिन बाकी । जो न सुवर्ण है सुख छाक ॥ रानिहुँ त्यों सिगरी तहँ आई । रजत तुला चढ़ि चढ़ि सुख छाई ॥