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पृष्ठ:बीजक.djvu/७४९

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बघेलवंशवर्णन । ( ७१९) । नृप जगदीश निदेश लहि, शुद्ध मानि विख्यात॥ वैशपतीको करिलियो, भातहिमें अवदात ॥ ५८ ॥ पंडा तुलसीरामको, अग्निहोत्र करवाय ॥ कियो अग्निहोत्री विदित, रह्यो सुयश जग छाय॥ ५९॥ दशहजार मुद्रा अउर, दो हजारको ग्राम ॥ ६ गोविंदगढ़ वास दिय, दै शुभ धाम अराम ॥२६०॥ छप्पय-श्रीरघुराज सुवाजपेय किय रह यश छाई ॥ याचक सोइ सोइ बस्तु लही जोई मुख गाई ॥ विप्र जे याज्ञिक रहे लहे ते द्रव्य हजारन ॥ भूषण वसन अमोल हेत असवारी वारन ॥ कवि वैश कहै युगलेश चलि, देशन देश नरेश मधि ॥ है विन कलेश मुख गाय यश, भये धनेश सुरेशसधि १ कुंडलिया-सबनरनाहनते अधिक, बादशाह कियमान॥ महाराज रघुराजसों, कौन सुजान जहान ॥ कौन सुजान जहान,सुकवि करि सकै बखानै॥ जो वखश्या वसु वसन,जननकहँ बेपरमानै ॥ मानै निज लखि तजे भूप कलकत्ते महँ तब ॥ युगलदासयह कृपा जानि लीजै सैतिके सब ॥ १ ॥ | कवित्तघनाक्षरी ।। वाजिन सवार राज राजिन कराय तह निज असवारी साथ शाह सोधवायो है ॥ लाट कोठि कुरसी में बांधवेशको बैठाय निज असवारीको जलूस दरशायो है ॥ देखि सब भूप लेखि निजते अधिक मान शरमाय शीशते बिशेषिहीं नवायोहै ॥ सच यदुराज कृपा जानै रघुरान पर जैन सब राजनते अधिक बनायो है ॥१॥ दोहा-लाख लाय मुद्रा नज़र, देनचहे नरनाह ॥ तिनको लियो न मानि तृण,शाह सहित उत्साह॥६१॥ मुद्रा सहस पचासकी, दियो अँगूठी नाथ ॥ लै सराहि रघुराजको, यहिरिलियो निज हाथ ॥ ६२॥