पृष्ठ:बीजक.djvu/७५

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             (२४)     बीजक कबीरदास। 
है यह कबीरजी बीजकभरेमें कह्या है । और अर्थ जे करै हैं ते बीजक को अर्थ नहीं जानैहैं काहेते भागूदास बीजक लैभागे सो बघेलवंश विस्तार में कबीरहीं जी कह दिया है कि अर्थ नहीं जाने हैं तामें प्रमाण ।। " भागूदासकी खबरिजनाई ॥ लैचरणामृत साधूपियाई ॥ कोउ आयकह कलिञ्जर गयऊ । बीजकग्रन्थचोराइलैगयऊ।सतगुरु कहूँ वहनिगुरापन्थी । काह भयोलै बीजकग्रंथी । चोरी करि वह चोरकहाई काह भयो बड़े भक्त कहाई ॥ बीन मूल हम प्रगट चिन्हाई ॥ बीज न चीन्हो दुर्मति ल्याई ।। बघेलवंश में प्रगटी हेसा । बीजक ज्ञान को करी प्रशंसा ।। सबसों पूछी प्रेम हिंताई । आप सुरति आपैमें ल्याई । बीजकलाय गुफा में राखी । सत्यै कहाँ बचन मैं भाखी । सो और २ अर्थ जे कबीरहा करें हैं ते भागूदास औ भगूदास के शिष्य प्रशिष्य, ते बीजक को वितंडाबाद अर्थ करिकै कबीरजी के सिद्धांत को अर्थ जो रामनामहै ताते जीवन को बिमुख करिडारयो नरककी राहबताय दियो काहेते दूसरी पोथीती रहीं नहीं वोही पोथी रही तौने को मनमुखी अर्थ कारकै आपबिगरे औ शिष्यन प्रशिष्यनको बिगारयो ने उनके सत्संग किये ते सब याही ते नाम तोरहै भगवानदास पै भागूदास कबीरजी कह्योहै । औ मैं जो तिलक करौं बीजक को सो एकतो साहबके हुकुमई ते कियो है सो आगेलिखि आये हैं दूसरे तिलक बनाइ बांधौगढ़में आयो तहां बयालिसवंश बिस्तार ग्रंथदेख्यो ताकोप्रमाण तिलकमें लिखिदियो। पाथी पंद्रहसैयकइसके सालकी धर्मदासके हाथकी लिखी है औ येहीपोथी में कबीरजी राजारामते आगम कहिदियो है ॥ “तुमसे दशौ बंश जो है हैं । सो तौ शब्द हमारो गहि हैं ॥ परमसनेही अनुभव बानी । कथिहैं शब्द लोक सहिदानी॥२॥तेहिते मैं जो अर्थ करौं हौं सोई कबीर जी का सिद्धांत है अनुबन्ध चतुष्टय-अधिकारी औ यह ग्रंथ में चारि साधन करिकै युक्त जो पुरुष है सो अधिकारी है चारि साधन कौन हैं नित्यानित्य बस्तु विवेक १ औ इहामुत्रार्थफल भोग बिराग २ औ दम शम उपरति तितिक्षा औ श्रद्धा समाधान ई षट्संपत्ति ३ औ मुमुक्षुता ४ नित्यानित्यविवेक का कहावै, जीवात्मा नित्य औ देह इन्द्रिय आदि दैकै जो संसार सो अनित्यहै यहै कहाँवै नित्यानित्याविवेक औ इहामुत्रार्थ फल-