पृष्ठ:बीजक.djvu/७४

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                       आदिमंगल।
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बचनमें आवै साहब तौदुहुनका मालिक हैं उनकी कहबाई कहाकरै जो कह। सबके मालिक श्रीरामचन्द्र यह कहतई जाउहौ औकहौ कि मनबचनमें नहीं अवैहैं यह बड़ो आश्चर्य है सो सत्य है ये कबीरहूजीकहै हैं ‘किरामो नहीं खोदाई काहेते रामो नहीं खोदायही कहै हैं “रामै नाम अहै निज सारू । औ सब झूठ सकल संसारू' ।। इत्यादिक बहुत प्रमाणदैकै बीजक भरेमें रामैनामको सिद्धांतकियोहै ताही में याको समाधानहै औताही में कबीरजीको बीजकलॉगै है। औरीभांति अर्थ किये नहींलागै है। सोसुनो जो साहबको रामनामहै ताके साध नकीन्हे ते वहमनबचनके परेजोरामनाम ताकोसाहब देइ है सो वह नाम याके बचनमें नहीं आवैहै साहिबै क दीन्हेते पावैहै । जब याको संसार छूट्यो तब अपने लोकको साहब हंसस्वरूप देईहै तौनेहंसस्वरूप में टिकिकै साहबकोदेखैहैंनामलेइहैं साहब साहब को नाम साहबको लोक साहबकवादियो हंसस्वरूप या प्राकृत अप्राकृत मन बचनके परे हैं तामेंप्रमाण ॥ ॥ यतोवाचोनिवर्ततेयत्परम्ब्रह्मणःपरम् । अतःश्रीरामनामादिनभवेद्ग्राह्यमिन्द्रियैः ॥ औ यह रामनामके जपन की बिधिजैसी २ कबीर जी आपने शब्दनमेंकह्योहै तेहिरीतिते जो जपर्करै तौ रामनाममन बचनपरे जोआपनो स्वरूप सोयाके अंतःकरणमें अस्फूर्तिकरि देयँ हैं औ साहब को रूपअस्फूर्ति करियें हैं आर्थात् आपहीअस्फूर्ति द्वैजयहै तामेप्रमाण ॥ ६ नामचिन्तामणीरामश्चैतन्यपरविग्रहः । नित्यशुद्धोनित्ययुकोन भिन्नन्नामनामिनः ।। अतःश्रीरामनामादि नभवेद्ग्राह्यामन्द्रियैः ॥ स्फुरतिस्वयमेवैतजिह्वादश्रवणेमुखे ॥२॥ सो यही रामनाम जो मनबचनके परहै ताही को कबीर जानै । “ सो जानै जेहिमहीं जनाऊ । बांह पकरि लोकै लै आऊं ॥ सहन जाप धुनि आपैहोई । यह सँधिबूझै बिरला कोई ॥ रग २ बोलै रामजी रोम रोम राकार । सहनै धुनि लागीरहै सोई सुमिरणसार ॥ ओठकंठहालैनहीं जिह्वानाहिंउचार । गुप्तबस्तुको ओ लखै सोईहंसहमार ॥ जो हंसरूपमें टिकिंकै जपत रहेहैं तैौनमें प्रमाण भक्तमालके टीकामें श्रीप्रियादासजीलिख्याहै ॥ “बिनै | तानो बानो हिय राममड़रानो' ।। श्रीमहाराजाधिराजरामसिंहबाबा पूछयोहै। तब कबीर साहबकह्योहै।“राअक्षरवट रम्योकबीरा ।। निजघरमेरोसाधुशरीरा १ तातेरामनामही को परत्व बजिकमें है मुक्ति रामनामहीमें है और साधनमनहा