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पृष्ठ:बीजक.djvu/७७

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              (२६) बीजक कबीरदास । 

सोहावही । अक्षयवृक्षतरसेज सोहंस बिछावहीं ॥ धरती आकाशजहांनहीं जग मंगै । वहियांदीनदयाल हंसकेसँगळंगै ॥तौने श्रीअयोध्याजी को जो है प्रकाश तामें शुद्ध जीव जे हैं तेभरे हैं तिनको साहबको औ साहबके लोकको ज्ञान नहीं है जो साहबको जाँनै औ साहब के लोक जाय तौ ना उलटि अवै सों साहबको तै जानै नहींहै याही ते माया उनको धार लैअवैहै सो प्रथम साहब दयाल उनमें दयाकरिकै आपनी शक्ति दैकै उनके सुरति उत्पत्ति करतभये कि हमको जानै हमारे पास आवै तौ मायातें बचि जाय सो आदिमंगलमें कहि आये हैं जब उनके सुरति भई तब वे धोखा ब्रह्ममें औ माया में लगिकै संसारी भये सो साहब बहुत हटक्यो सो हटको ना मान्यो सो आगे बेलिमें कहेंगे । “तू हंसामनमानि कहौ रमैया राम । हटल न मान्य मोर हो रमैया राम । जसकीन्ह्योतसपायोहो रमैया राम ।हमरदोषज निदेहु हो रमैया राम ॥ औ साहबके लोकमें मनादिकनको कारण नहींहै, तामें प्रमाण ॥ * नयत्रशोकोनजरान मृत्युर्नकालमायाप्रलयादिवि भ्रमः ॥ रमेतरामेतुसतत्रगत्वास्वरूपतांप्राप्याचरंनिरंतरम् ॥ इति वसिष्ठसं| हितायाम् ॥१॥ कबीरी जीकह्यो है ॥ “तत्वभिन्ननिहतत्वनिरक्षरमनप्रेमसेन्या रा । नाद बिंदुअनहदनिरगोचरसत्यशब्दनिरधारा ॥औ साहब को लोक सबके पार है सो मंगल में कहिआये हैं जो साहब को जानै ओ साहबके लोक नाइ तौ संसार में ना आवै सो तौनै उत्पात्त श्रीकबीरजी प्रथम रमैनी में संक्षेप ते कहै हैं औ सबकी उत्पत्ति साहब के लोकके प्रकाश के बहिरेहीते होइहै तामें प्रमाण ज्ञानसागरको ॥“जानैभेद न दूसराई । उतपतिसबकीबाहरहोई॥ १॥"