पृष्ठ:बीजक.djvu/८३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

(३२) : बीजक कबीरदास । इच्छारूपनारिअवतरी । तासुनामगायत्रीधरी ॥ २॥ आपनेको जो धोखाते ब्रह्म मानिलियो समष्टिरूप जीव, ताके जब इच्छाभई सोई मूल प्रकृति माया है तेहिते शवलित ब्रह्म भयो सो इच्छा माया जबकट भई ताको नामगायत्री धरावत भये । गायत्री तो सूर्यमध्यवर्ती ने श्रीरामचन्द्र तिनको तात्पर्य ते बतावैहै सो अर्थतो न ग्रहण करत भये सूर्यके मध्यमें साहब है तामें प्रमाण॥ ‘सूर्यमंडलमध्यस्थं रामसीतासमन्वितम् ।। सूर्यप्रतिपादक अर्थ ग्रहण करतभये । तेहिते दिन रात संध्या होतभई । ॐ ब्रह्मादिक देवताभये सो आगे कहेंगे यह संसार मुख अर्थसमुझचे तेहिते गायत्री सबकी उत्पत्ति कर तभई जो कहो काहेते जाने कि गायत्रीक बैअर्थ हैं तौ सुनो यहबाणी जाहै सो सार शब्द जो रामनाम ताको लैके प्रथम प्रगटभई है । तामें बैअर्थहैं एकसाह ब मुख, एक संसारमुख । ऐसे प्रणव निगम अगम इनमें वै अथै, एक साहबमुख एक संसारमुखकाहेते कि रामनाम ते सब निकसे सो जो कारणमें अर्थभये तो कार्यमें बैअर्थहोवई चाहैं । सो संसारमुख अर्थलैकै जीव संसा होतभये सो यह उत्पत्ति मंगलमें विस्तारते लिखिआये हैं ताते संक्षेप इहाँ उत्प त्ति लिख्यो है ॥ २॥ तेहिनारीकेपुत्रतिनिभयङब्रह्माविष्णुमहेशनामधयऊ ॥३॥ | तौने गायत्रीरूप नारीके पुत्र ब्रह्मा विष्णु महेश उत्पन्न होत भये तब वह नौ गायत्रीरूप नारी है॥ ३ ॥ तवब्रह्मापूंछतमहतारी । कोतोरपुरुषकेकरतुमनारी ॥ ४ ॥ | तासोंब्रह्मा पूंछत भये कि को तोर पुरुष है कोकरि तू नारी है । काके हम पुत्र हैं सो बताउ हम जानो चहैं तब वा नारी कहत भई ।। ४ ।। तुमहमहमतुमऔरनकोई । तुममोरपुरुषहमैंतोरजोई ॥६ प्रथम साहब के लोक प्रकाशमें अनादिकालते साहबते विमुखतारूप जो जगत्को कारण तेहिते सहित जीव समष्टिरूप बास कियोरह्यो तिनके ऊपर साहब दया कियो कि 4 अबोध सुषुप्ति ऐसे में परेहैं इनको सुखको अनुभव